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प्रतिज्ञा-पाठ कितनी बार ?
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कि ये उल्लेख साघु के लिए आए है, श्रावक के लिए नही । परन्तु प्रश्न यह है कि ग्रात्म-विकास की दृष्टि से साधु की भूमिका ऊ ची है या गृहस्थ की ? जब उच्च भूमिका वाले साधु के लिए तीन बार प्रतिज्ञा-पाठ उच्चारण करने का विधान है, तब फिर गृहस्थ के लिए तो कोई विवाद ही नही रह जाता । मेरा आशय सिर्फ इतना ही है कि प्रतिज्ञा के उच्चारण के साथ हो हमारा सकल्प जागृत होना चाहिए, और उसके लिए हमें अपनी प्रतिज्ञा, जो दृढ संकल्प का रूप है, उसे तीन बार दुहराना चाहिए।