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वैदिक सन्ध्या और सामायिक
प्रत्येक धर्म के आचार व्यवहार मे प्रतिदिन कुछ-न-कुछ पूजा-पाठ, जप-तप, प्रभु- नाम-स्मरण आदि धार्मिक क्रियाएँ की जाती है । मानव-जीवन सम्बन्धी प्रतिदिन की प्राध्यात्मिक भूख की शान्ति के लिए, एव मन की प्रसन्नता के हेतु प्रत्येक पन्थ या मत ने कोई-नकोई योजना, मनुष्य के सामने अवश्य रक्खी है ।
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जैन-धर्म के पुराने पडोसी वैदिक धर्म मे भी सन्ध्या नाम से एक धार्मिक अनुष्ठान का विधान है, जो प्रात और सायकाल दोनो समय किया जाता है । वैदिक टीकाकारो ने सन्ध्या का अर्थ इस प्रकार किया है - स - उत्तम प्रकार से ध्यै -- ध्यान करना । अर्थात् अपने इष्टदेव का पूर्ण भक्ति और श्रद्धा के साथ ध्यान करना, चिन्तन करना । सन्ध्या शब्द का दूसरा अर्थ है -- मिलन, सयोग, सम्बन्ध | उक्त दूसरे अर्थ का तात्पर्य है - उपासना के समय परमेश्वर के साथ उपासक का सबन्ध यानी मिलना । सन्ध्या का एक तीसरा अर्थ भी है, वह यह कि प्रात काल और सायकाल दोनो सन्ध्याकाल है । रात्रि और दिन की सन्धि प्रात काल है, और दिन एव रात्रि की सन्धि सायकाल है । अत सन्ध्या मे किया जानेवाला कर्म भी 'सन्ध्या' शब्द से व्यवहृत होता है।
वैदिक धर्म की इस समय दो शाखाएं सर्वत प्रसिद्ध हैंसनातन धर्म और आर्यसमाज | सनातनी पुरानी मान्यताओ के . पक्षपाती हैं, जब कि आर्यसमाजी नवीन धारा के अनुयायी । वेदो