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[ २६ ] एतैर्युक्तो लक्षणैः यः परो निष्कलो देवः ।
स तत्र निवसति परमपदे यः त्रैलोक्यस्य ध्येयः ।।२।। आगे तीन लोककर वन्दना करने योग्य पूर्व कहे हुए लक्षणों सहित जो शुद्धात्मा कहा गया है, वही लोकके अग्रमें रहता है, यही कहते हैं-(एतैः लक्षणः) 'तीन भुवनकर वंदनीक' इत्यादि जो लक्षण कहे थे, उन लक्षणोंकर (युक्तः) सहित (परः) सबसे उत्कृष्ट (निष्कलः) औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस, कार्माण ये पांच शरीर जिसके नहीं हैं, अर्थात् निराकार है, (देवः) तीन लोककर आराधित जगतका देव है, (यः) ऐसा जो परमात्मा सिद्ध है, (सः) वही (तत्र परमपदे) उस लोकके शिखर पर (निवसति) विराजमान है, (यः) जो कि (त्रैलोक्यस्य) तीन लोकका (ध्येयः) ध्येय (ध्यान करने योग्य) है।
भावार्थ-यहां पर जो सिद्धपरमेष्ठीका व्याख्यान किया है, उसीके समान . अपना भी स्वरूप है, वही उपादेय (ध्यान करने योग्य) है, जो सिद्धालय है, वह देहालय है, अर्थात् जैसा सिद्धलोकमें विराज रहा है, वैसा ही हंस (आत्मा) इस घट (देह) में विराजमान है ।।२५।।
अत ऊर्ध्व प्रक्षेपपञ्चकमन्त वचतुर्विंशतिसूत्र पर्यन्तं यादृशो व्यक्तिरूपः परमात्मा मुक्तौ तिष्ठति तादृशः शुद्धनिश्चयनयेन शक्तिरूपेण तिष्ठतीति कथयन्ति । तद्यथा
जेहउ णिम्मलु णाणमउ सिद्धिहि णिवसइ देउ । तेहउ णिवसइ बंभु परु देहहं मं करि भेउ ॥२६॥
यादृशो निर्मलो ज्ञानमयः सिद्धौ निवसति देवः ।
तादृशो निवसति ब्रह्मा परः देहे मा कुरु भेदम् ॥२६॥
इस प्रकार जिसमें तीन तरहके आत्माका कथन है, ऐसे प्रथम महाधिकारमें मुक्तिको प्राप्त हुए सिद्धपरमात्माके व्याख्यानको मुख्यताकर चौथे स्थल में दस दोहा-सूत्र कहे । आगे पांच क्षेपक मिले हुए चौवीस दोहोंमें जैसा प्रगटरूप परमात्मा मुक्तिमें है, वैसा ही शुद्धनिश्चयनयकर देहमें भी शक्तिरूप है, ऐसा कहते हैं-(यादृशः) जैसा केवलज्ञानादि प्रगटस्वरूप कार्यसमयसार (निर्मलः) उपाधि रहित भावकर्म-द्रव्यकर्म-नोकर्मरूप