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श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति
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छन्द त्रोटक
यातें है जिन बुध नुत तव गुण, अद्भुत प्रभावघर न्याय सगुण । चिंतनकर पन हम लीन भए, तुमरे प्रणमन तल्लीन भए ।। १३० ।।
(२३) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुतिः तमालनीलैः सधनुस्तडिद्गुणैः प्रकीर्णभीमाशनिवायुवृष्टिभिः । बलाहकैर्वैरिव शैरुपद्गुतो महामना यो न चचाल योगतः ॥ १३१ ।।
अन्वयार्थ--( यो महामना ) जो महान धीर श्री पार्श्वनाथ भगवान ( नरिवशैः । समठ के जीवरूपी वैरी से ( तमालनीलैः बलाहकैः ) तमाल वृक्ष के समान नील मेघों के द्वारा ( सधनुस्तडिद्गुणैः । बिजलीरूपी डोरी को रखने वाले इन्द्र-धनुष द्वारा { प्रकीर्णभीमाशनिवायवृष्टिभिः) भयङ्कर वज्रपात व मोटी हवा द भयंकर जलवृष्टि द्वारा (उपद्तः, उपसर्ग किये जाने पर सी ( योगतः ) परम ध्यान से । न चचाल ) चलायमान न होते हुए।
भावार्थ:--श्री पार्श्वनाथ का जीव जब मरुभूत ब्राह्मण था तब कम० उसका बड़ा - भाई था.तब से कमठके जीव में पार्श्वनाथ के जीव से वैर बंध गया । यद्यपि मरुभतके जीव
में वैर न था इसलिये इसने पार्श्वनाथजी के जीव को हर भव में काट दिया। जब पाश्वनाथ तीर्थकर तप अवस्था में ध्यान कर रहे थे तब कमठ का जीव ज्योतिषी देव हम्रा था। भगवान को ध्यान करता देखकर इसने घोर उपसर्ग किया। काले २ बादल दिखाए,बिजली
चमकाई. पवन चलाई, जल दृष्टि कराई, बिजली गिराई आदि बहुत ही कर दिये परन्त . पीर वीर प्रभु पार्श्वनाथ ने अपने ध्यान को छोड़कर जरा भी संक्लेश नाव नहीं किये।
परी छन्द अय पार्श्वनाथ प्रति घोर वीर, नोले बादल विजली गम्भीर।
प्रति उन वजू जल पवन पात, वैरी उपद्रुत नहिं ध्यान जास ।। उत्सानिका-जब भगवान को उपसर्ग हुना तद घरगेन्द्र ने क्या किया