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________________ १८४ स्वयंभू स्तोत्र टीका प्रभाव से तो मोहनीय कर्म का नाश किया फिर एकत्व वितर्क अविचार नाम दूसरे शुक्लध्यान की अग्नि से ज्ञानावरण,दर्शनावरण और अन्तराय कर्म का नाश किया। इस तरह प्रभु अरहन्त परमात्मा हुए। फिर प्रयोग गुरगस्थान में व्युपरतक्रियानिवृत्त लक्षण चौथे शुक्लध्यान के द्वारा शेष चार अघाति कर्मों को भी भस्म कर डाला । जिन पाठ कर्मों का अनादि से प्रवाहरूप सम्बन्ध था व जिनका अन्त करना अति कठिन था उन सब कर्मों को प्रभु ने प्रात्मध्याल की अग्नि से जला डाला। इस तरह मल्लिनाथ भगवान सर्व कर्मों से रहित होकर मुक्त होगए। प्रभु ने जो कुछ करने योग्य कार्य था उसको कर डाला। अब कोई कार्य करना शेष न रहा। प्रभु का आत्मा बिलकुल निर्मल होगया। कोई माया, मिथ्या, निदान शल्य उनकी आत्मा में नहीं रही। ऐसे शुद्ध परमात्मा श्री मल्लिनाथ की शरण में मैं प्राप्त होता हूं जिससे मेरा आत्मा भी पवित्र हो जावे । श्री नागसेन मुनि ने तत्त्वानुशासन में कहा है बज्रकायः स हि ध्यात्वा शुक्लघ्यानं चतुर्विध । विधूयाष्टापि कर्माणि श्रयते मोक्षमक्षयं ॥ २८६ ।। अर्थात्-वज्रवृषभनाराच संहननधारी महात्मा चार प्रकार शुक्लध्यान को ध्यायकर व आठों ही कर्मों का क्षय कर अविनाशी मोक्ष अवस्था को प्राप्त हो जाते हैं । छन्द श्रोटक जिन शुक्ल ध्यान तप अग्नि बली, जिससे कौंध अनन्त जली। जिनसिंह परम कृतकृत्य भये, निःशल्य मल्लि हम शरण गये ।। ११०॥ (२०) श्री मुनिसवत जिन स्तुतिः अधिगतमुनिसुव्रतस्थिति, निवृषभो मुनिसुनतोऽनघः । मुनिपरिषदि निर्बभौ भवानुडुपरिषत्परिवीतसोमवत् ॥ १११ ॥ अन्वयार्थ--( अधिगतमुनिसुव्रतस्थितिः) जो मुनि योग्य शोभनीक व्रतों में निश्चित
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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