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________________ स्वयंभू स्तोत्र टीका ... भावार्थ-अनेक योनियों से भरे हुए इस संसार में अनादि से भ्रमण करते हुए जिनेन्द्र भाषित धर्म का ज्ञान मिलना बहुत कठिनता से होता है। अब उस संसार नाशक मार्ग को पाकर बुद्धिमान को एक क्षण भी प्रमाद करना उचित नहीं है । प्रात्मानं स्नापयेन्नित्यं ज्ञाननोरेण चारुणा । येन निर्मलतां याति जीया जन्मान्तरेष्वपि ॥३१४।। भावार्थ-इसलिये आत्मा को नित्य ही निर्मल ज्ञानरूपी जल से स्नान कराना चाहिये, जिससे यह जीव जन्म जन्मान्तर में पवित्रता को प्राप्त करले । शृग्विनी छन्द भोग की चाह पर चाह जीवन करे, लोक दिन श्रम करे रात्रि को सो रहे । हे प्रभू प्राप तो रात्रि दिन जागिया, मोक्ष के मार्ग को हर्षयुत साधिया ।। ४८ ॥ उत्थानिका-तृष्णा से ठगाये हुए प्राणी और क्या २ करते हैं सो कहते हैंअपत्यवित्तोत्तरलोकतृष्णया तपस्विनः केचन कर्म कुर्वते । भवान्पुनर्जन्मजराजिहासया, त्रयी प्रवृत्ति शमधीरवारुणत् ॥४६॥ अन्वयार्थ- (केचन तपस्विनः) कोई प्रात्मश्रद्धान रहित तपस्वी जन (अपत्यवित्तोत्तरलोकतृष्णया ) पुत्रादि, धनादि व परलोक के सुख की तृष्णा से पीड़ित होकर ( कर्म कुरुते ) धर्म प्रादि व तप आदि कर्म करते हैं ( पुनः ) परन्तु ( भवान् ) प्राप ( शमधीः ) शान्त बुद्धि रखने वाले वीतरागी ने तो ( जन्मजराजिहासया ) अनादि काल से चले आए हुए जन्म जरा मरण के दूर करने के उद्देश्य से ( त्रयी प्रवृत्ति ) मन वचन काय की प्रवृत्ति को ( अवारुणत् ) रोक दिया और मात्र स्वात्मानुभव रूप रत्नत्रय भोग में तन्मय होगए। भावार्थ-मिथ्यादृष्टी अज्ञानी जीव जो धर्म का अनुष्ठान भी करते हैं तो उममें यही इच्छा रखते हैं कि इसके फल से पुत्र की प्राप्ति हो जावे व परलोक में स्वर्गादि के सुख प्राप्त हो जावें। इसलिये उन अज्ञानियों का धार्मिक क्रियाकाण्ड व उनका किया हुना नाना प्रकार का काय का क्लेश मात्र संसार का बढ़ानेवाला व प्राकुलता को देने वाला तथा प्रात्मिक शीतलता से शन्य संतापमय ही होता है । परन्तु धन्य हैं श्री शीतल. नाथ भगवान् ! पाएने तो इस जन्म जरा मरण रूप संसार का संहार करने का ही बीड़ा
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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