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श्री संवभनाथ स्तुति
२१ (अनाथरुजां ) किसी अशरण, निर्धन व असहायके रोगों को ( प्रशान्त्य ) दूर करने के लिये (वैद्यः) कोई अचानक बिना बुलाए, परोपकारी वैद्य अकस्मात् सहाई हो जाता है। .
भावार्थ-तीसरे तीर्थङ्कर श्री संभवनाथ स्वामी की स्तुति करते हुए प्राचार्य ने उनके दो नामों पर लक्ष्य दिया है-एक शंभव दूसरे संभव । शंभव का अर्थ यह किया कि उनके स्मरण व ध्यान व भजन से भव्य जीवों को सुख की प्राप्ति होती है इसलिये वे शंभव हैं । दूसरे सभव का अर्थ किया है कि बार २ किसी क्रम टूटे बिना चलने वाले संसार व ससारी जीव उसके पाप नाथ हैं व रक्षक हैं । इसी अर्थ का विशेष खुलासा एक परोपकारी निस्पृह वैद्य का दृष्टांत देकर किया है। जैसे कहीं कोई अनाथ रोग से पीड़ित पड़ा घबड़ा रहा हो, वह द्रव्याभाव से व सहायता के अभाव से किसी वैद्य को बुला भी नहीं सकता हो, अचानक उसके दुःख को देखकर एक परोपकारी वैद्य या जाता है। वह उसको औषधि बताता है व उसे सेवन करने को प्रेरणा करता है व विश्वास दिलाता है कि यदि तू सेवन करेगा तो निश्चय से तू निरोगी हो जायगा । वह रोगी जब उस परोपकारी निरपेक्ष वैद्य की शिक्षा के अनुसार औषधिका सेवन यथार्थ रूप से करता है तब वह स्वयं अच्छा हो जाता है । इसी तरह श्री संभवनाथ स्वामी जब अरहंत हुए तब बिना किसी फल की इच्छा के अकस्मात् उनका दिव्य उपदेश उन भव्य जीवों के पुण्यके उदय से उन्हीं के हितार्थ हुश्रा जो अनादिकाल से मोहकर्म के प्रेरे हुए संसार में तृष्णारूपी रोग से पीड़ित होकर घबड़ा रहे थे। वे बिचारे अज्ञान से उस रोग को यथार्थ औषधि न पाते हुए तृष्णाकी शांति के लिये इंद्रिय विषयों में दौड़ २ कर जाते थे, तब तृष्णा रोग को और भी बढ़ा लेते थे । इसी विषय-तृष्णावश पाप कर्म गंध दुर्गति में दुःख उठाते थे। उन जीवों को प्रकस्मात् जब भगवान की दिव्यवाणी से रत्नत्रयमई जिनधर्मका स्वरूप प्रगट हुमा कि जो संसार को तृष्णामई रोग के शमन को सच्ची दवाई है। तव जिन २ भव्य रोगियों ने इस धर्म रूपी प्रौषधि पर विश्वास किया और उसका यथार्थ रीति से सेवन किया उनका संसार रोग मिट गया-वे प्रात्मानन्द को पाकर परम तृप्त हो गए। और बरावर प्रात्मानुभवमई दिव्य औषधि के सेवन से मोहादि कर्मों को नाशकर बिलकुल ससार रोग रहित निरोग, स्वस्थ व स्वाधीन होगए। यहां वैद्य का दृष्टांत इसीलिये दिया है कि वैद्य मात्र प्रौषधि का बताने वाला है, वैद्य वैसे ही किसी रोगी का रोग दूर नहीं कर सकता । जब रोगी स्वयं ग्रीषधि सेवन करेगा तब ही वह अच्छा होगा। इसी तरह सर्वज्ञ वीतराग प्रहंत भगवान किसी भी भक्त को मुक्ति नहीं दे सकते, न उसके संसार रोग को शमन कर सकते हैं, वे