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स्वयंभू स्तोत्र टीका
उद्देश्य रखना उचित है । तब यह जीव यहां भी प्रात्मिक सुख शान्ति प्राप्त कर सकता है व भविष्य में भी अपना जीवन उच्च बना सकता है । श्री श्रमितिगति महाराज सुभाषित - रत्नसंदोह में कहते हैं
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एको मे शाश्वतात्मा सुखमसुखभुजो ज्ञानदृष्टिस्वभावो ॥ नान्यत्किंचिन्निजं मे तनुधनकरणा भ्रातभार्यासुखादिः कर्मोद्भूतं समस्तं चपलमसुखदं तत्र मोहो वृथा मे । पर्यालोच्येति जीव स्वहितमवितथं मुक्तिमागं श्रयत्वम् ॥ भावार्थ - ज्ञानी को उपदेश करते हैं कि ऐसा विचार कर कि मेरा श्रात्मा एक अकेला ही अविनाशी है, यही दुःख सुख को अकेला भोगने वाला है । यह ज्ञानदर्शन स्वभाव का धारी है । इस जगत में मेरा और कोई भी नहीं है । यह शरीर, धन, इन्द्रिय, भाई, स्त्री व सांसारिक सुख आदि ये कोई भी मेरे नहीं हो सकते हैं, यह सर्व कर्मों के उदय से हुए हैं, चंचल हैं, दुःखकारी हैं । इनमें मेरा मोह करना वृथा है । तथा हे जीव ! ส अपने हितकारी सच्चे मोक्ष मार्ग को धारण कर, इसीसे ही तू सुखी होगा । यही भावना हर एक धर्मात्मा जीव को परमात्म-भक्ति करते हुए भी रखनी चाहिये । तीर्थंकरों की स्तुति मात्र आत्म चिन्तन में प्रेरक है, इसीलिये जब निर्विकल्प समाधि या ध्यान में मन न लगे तब ही करनी योग्य है ।
संस्कृत टीकाकार ने लिखा है कि नैयायिक ऐसी शंका करते हैं कि सर्व कर्मों के नाश होने के पूर्व जिनेश्वर को सर्वज्ञ कहते हो तो कहो; परन्तु सर्वं कर्म नाश होने पर वह सर्वज्ञ नहीं रहता । उसके बुद्धि श्रादि सब विशेष गुरणों का अत्यन्त नाश हो जाता है । यह कहना ठीक नहीं है । ज्ञान आत्मा का गुण है, गुण गुरंगी कभी अलग नहीं हो सकते हैं, कर्मों के नाश से ज्ञान पूर्ण प्रगट हो जाता है । सांख्यमत वाले भी मोक्ष में ज्ञान का प्रभाव मानते हैं । वे चैतन्य मात्र रह जाता है ऐसा तो मानते हैं तथापि कहते हैं कि ज्ञान प्रकृति के सम्बन्ध से रहता है । जब प्रकृति छूट गई तब ज्ञान भी नहीं रहा भी कहना ठीक नहीं है | चेतना गुरण ज्ञानदर्शनमय है । इसलिये परमात्मा ज्ञाता दृष्टाप से कभी शून्य नहीं हो सकता है । क्षुल्लक मत के विषय में टीकाकार ने उनको बतलाया है जिनके कर्ता सर्वज्ञ न थे व जिन्होंने एकान्त तत्त्व को बताया है । किन्हीं ने वस्तु को सर्वथा नित्य, किन्हीं ने सर्वथा क्षणिक ही कही है । श्री जिनेन्द्र भगवान ने पदार्थ को नित्य व अनित्य दोनों रूप देखा व वैसा कहा । द्रव्य जब स्वभाव की थिरता से नित्य है तब पर्याय के पलटने से श्रनित्य है । यही बात प्रत्यक्ष प्रगट है । तब इस सत्य को बताने वाले
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