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... स्वयंभू स्तोत्र टीका देवों ने बड़ी भक्ति से गर्भ का महा उत्सव किया। फिर जन्म लेने पर बड़े समारोह से प्रभु को ले जाकर सुमेरु पर्वत पर क्षीरसागर के जल से अभिषेक किया । ऐसे भगवान पूर्व जन्म के संस्कार से जन्म से ही महात्मा थे, आत्मज्ञानी थे व मति, श्रुत, अवधि तीन ज्ञान के अधिकारी थे-उनको विद्या पढ़ने की जरूरत नहीं पडी । वे अपने व दूसरों के अगले पिछले जन्मों के चारित्र को भी अवधिज्ञान से जान सकते थे । ऋषभदेव भगवान के समय में वे कल्पवृक्ष-जिनसे प्रजा इच्छित भोजनादि सामग्री प्राप्त कर लेती थी, बिलकुल न रहे. तब प्रजा किंकर्तव्य मढ़ होगई। उस समय किस तरह पेट पालना, इस चिन्ता से व्यथित हो प्रजा श्री ऋषभदेव की सेवा में आकर विनती करने लगी कि हमारी रक्षा का उपाय बतायें। तब गृहस्थ अवस्था ही में प्रभु ने अपने दिव्यज्ञान से विचार कर आजीविका साधन के छह कर्म बताए। असि कर्म, मसि कर्म, कषि कर्म, वाणिज्य कर्म, शिल्प कर्म, विद्या या सेवा कर्म। और उस समय की प्रजा का निरीक्षण कर जो जिस कर्म के योग्य था उसको वह कर्म सौंप दिया और इस निचार से कि नह कर्म उसका खानदानी पेशा हो जावे जिसमें उसकी सन्तान शुरू से ही प्रगीरण हो निकले यह व्यवस्था की, कि तीन वर्ष स्थापित कर दिये । जो असि कर्म या रक्षा कर्म के योग्य नीर थे उनको क्षत्रिय वर्ण में, जो लिखने के कर्म मसि, खेती न व्यापार योग्य कुछ शान्त प्रकृति के न चतुर थे उनको वैश्य गर्ण में, इनके सिनाय जो मन्द बुद्धि थे उनको शिल्प न विद्या या सेवा कर्म सौंपा गया और उनको शूद्र वर्ण में रक्खा। उस समय यह नियम कर दिया कि हर कोई अपनी-अपनी नियत प्राजोनिका करे न जो इस नियम को उल्लंघन करेगा वह दण्ड का पात्र होगा। इस प्रकार प्रजा को संतोषपूर्वक नाकुलता रहित जीवन बिताने का सब मार्ग प्रभु ने गृहस्थानस्था में बताया और उसी का प्रचार किया । जन तक ८३ लाख पूर्व वर्ष नहीं हुए तब तक वे गृहस्थ ही में रहे । यद्यपि वे जन्म से सम्यग्दृष्टी थे. प्रात्मज्ञानी थे, ( वैरागी थे, संसार शरीर भोगों से उदास थे, ) ( आत्मानन्द को ही सच्चा सुख समझते थे, विषय सुख को विषवत् जानते थे तथापि कषाय के उदय को इतना नहीं जीत सके थे जो एकदम से वैरागी हो जावे व त्यागी हो जाने ) । देशविरत गुणस्थान के योग्य कपाय मौजद थी इसी से वे विवाह करके रहे । भरत वाहबलि आदि पुत्रों को व ब्राह्मी सुन्दरीपुत्रियों को जन्म दिया। उन सवको निधा पढ़ाई न योग्य बनाया। मुनिव्रत धारण योग्य भाव को रोकने वाल प्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय से वे गृह में जल में कमलगत् रहे परन्तु त्याग न कर सके । स्वात्मानुभन के प्रताप से ग श्रात्मा की उत्कृष्ट भावना के बल से प्रभु को जब