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परमात्मप्रकाश
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.... जे परमप्पहं भत्तियर विसय रण जे विरमंति। -
ते परमप्प-एयासयहं मुणिवर जोग्ग हवंति २०८॥ ये परमात्मनो भक्तिपरा: विषयान् न येऽपि रमन्ते । .. ते परमात्मप्रकाशकस्य मुनिवरा योग्या भवन्ति ।।२०८।।।
आगे फिर भी उन्हीं पुरुषोंकी महिमा कहते हैं-(ये) 'जो (परमात्मनः भक्तिपराः ) परमात्माकी भक्ति करनेवाले (ये) जो मुनि (विषयान् न अपि रमते) विषयकषायोंमें नहीं रमते हैं, (ते मुनिवराः) वे ही मुनिश्वर (परमात्मप्रकाशस्य योग्याः) परमात्मप्रकाशके अभ्यासके योग्य ( भवंति ) हैं।
भावार्थ-व्यवहारनयकर परमात्मप्रकाश नामका ग्रन्थ और निश्चयनयकर निजशुद्धात्मस्वरूप परमात्मा उसकी. भक्तिमें जो तत्पर हैं, वे विषय रहित जो परमात्मतत्त्वकी अनुभूति उससे उपार्जन किया जो अतीन्द्रिय परमानन्दसूख उसके रसके
आस्वादसे तृप्त हुए विषयोंमें नहीं रमते हैं। जिनको मनोहर विषय आकर प्राप्त हुए हैं, ___ता भी वे उनमें नहीं रमते ।।२०८।।
अथ
. णाण-वियक्खणु सुद्ध-मणु जो जणु एहउ कोई । ... सो परमप्प-पयासयह जोग्गु भणंति जि जोइ ॥२०६॥
: ज्ञानविचक्षणः शुद्धमना यो जन ईदृशः कश्चिदपि । । तं परमात्मप्रकाशकस्य योग्यं भणन्ति ये योगिनः ।।२०६।।
आगे फिर भी यही कथन करते हैं-(यः जनः) जो प्राणो (ज्ञानविचक्षणः) स्वसंवेदनज्ञानकर विचक्षण [बुद्धिमान] हैं, और (शुद्धमनाः) जिसका मन परमात्माकी अनुभूतिसे विपरीत जो राग द्वष मोहरूप समस्त विकल्प-जाल उसके त्यागसे शुद्ध है, ( कश्चिदपि ईदृशः) ऐसा कोई भी सत्पुरुष हो, (तं) उसे (ये योगिनः ) जो योगोश्वर हैं, वे (परमात्मप्रकाशस्य योग्य) परमात्मप्रकाशके आराधने योग्य (भणंति) कहते हैं।
भावार्थ-व्यवहारनयकर यह परमात्मप्रकाशनामा द्रव्यसूत्र और निश्चयनयकर शुद्धात्मस्वभावसूत्रके आराधनेको के ही पुरुष योग्य हैं, जो कि आत्मज्ञानके प्रभावसे