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________________ परमात्मप्रकाश . जण सलाम [ २५६ (पंचभिः रसैः) पांच रसोंसे (गच्छत् चित्त) चलायमान चित्तको (निवार्य) रोककर (अनंत) अनन्तगुणवाले (आत्मानं देवं) आत्मदेवका (ध्याय) चितवन कर । भावार्थ-वीतराग, परम आनन्द सुख में कोड़ा करनेवाले, केवलनानादि अनन्तगुणवाले अविनाशी शुद्ध आत्माका एकाग्रचित्त होकर ध्यान कर । क्या करके ? वीतराग शुद्धात्मद्रव्यसे विमुख जो समस्त शुभाशुभ राग, निजरससे विपरीत जो दधि, दुग्ध, तेल, घी, नोन, मिश्री, ये छह रस और जो अरूप शुद्धात्मद्रव्यसे भिन्न काले, सफेद, हरे, पीले, लाल, पांचत रहके रूप इनमें निरन्तर चित्त जाता है, उसको रोककर आत्मदेवको आराधना कर ।।१७२।। अथ येन स्वरूपेण चिन्त्यते परमात्मा तेनैव परिणमतीति निश्चिनोति जेण सरूविं झाइयइ अप्पा एहु अणंतु । तेण सरूविं परिणवइ जह फलिहउ-मणि मंतु ॥१७३॥ येन स्वरूपेण ध्यायते आत्मा एषः अनन्तः ।। तेन स्वरूपेण परिणमति यथा स्फटिकमणि: मन्त्रः ।।१७३।। आगे आत्माको जिसरूपसे ध्याबो, उसीरूप परिणमता है, जैसे स्फटिकमणिके नीचे जैसा डंक दिया जाये, वैसा ही रंग भासता है, ऐसा कहते हैं-(एषः) यह प्रत्यक्षरूप (अनंतः) अविनाशी (आत्मा) आत्मा (येन स्वरूपेण) जिस स्वरूपसे (ध्यायते) ध्याया जाता है, (तेन स्वरूपेण) उसी स्वरूप (परिणमति) परिणमता है, (यथा स्फटिकमणिः मंत्रः) जैसे स्फटिकमणि और गारुड़ी आदि मन्त्र हैं । भावार्थ-यह आत्मा शुभ, अशुभ, शुद्ध इन तीन उपयोगरूप परिणमता है । जो अशुभोपयोगका ध्यान करे, तो पापरूप परिणवे, शुभोपयोगका ध्यान करे, तो पुण्यरूप परिणवे, और जो शुद्धोपयोगको ध्यावे, तो परमशुद्धरूप परिणमन करता है। जैसे स्फटिकमणिके नीचे जैसा डंक लगामो, अर्थात् श्याम, हरा, पीला लाल में से जैसा लगाओ, उसोरूप स्फटिकमणि परिणमता है, हरे डंकसे हरा और लालसे लाल भासता है । उसी तरह जीवद्रव्य जिस उपयोगरूप परिणमता है, उसीरूप भासता है। और गारुडी आदि मन्त्रों में से गारुड़ी मन्त्र गरुड़रूप भासता है. जिससे कि सर्प डर जाता है। ऐसा ही कथन अन्य ग्रन्थोंमें भी कहा है, कि जिस-जिस रूपसे आत्मा परिपमता है, उस-उस रूपसे आत्मा तन्मयी हो जाता है, जैसे स्फटिकमणि उज्ज्वल है,
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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