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________________ २३४ ] परमात्मप्रकाश पंचहं णायकु वसिकरहु जेण होंति वसि अराण । मूल विणटुइ तरु-वरहं अवसई सुकहिं पण्ण ।।१४०॥ पञ्चानां नायकं वशीकुरुत येन भवन्ति वशे अन्यानि । मूले विनष्टे तरुवरस्य अवश्यं शुष्यन्ति पर्णानि ।।१४०।। आगे मनके जीतनेसे इन्द्रियोंका जय होता है, जिसने मनको जीता, उसने सब इन्द्रियोंको जीत लिया, ऐसा व्याख्यान करते हैं--(पंचानां नायक) पांच इन्द्रियों के स्वामी मनको (वशीकुरुत) तुम वशमें करो (येन) जिस मनके वश होनेसे (अन्यानि वशे भवंति) अन्य पांच इन्द्रियें वशमें हो जाती हैं । जैसे कि (तरुवरस्य) वृक्षकी (मूले विनष्टे) जड़के नाश हो जाने से (पर्णानि) पत्ते (अवश्यं शुष्यंति) नियम से सूख जाते हैं । भावार्थ-पांचवां ज्ञान जो केवलज्ञान उससे पराङ मुख स्पर्श, रसना, घ्राण, चक्षु, श्रोत्र, इन पांचों इन्द्रियोंका स्वामी मन है, जो कि रागादि विकल्प रहित परमात्माकी भावनासे विमुख और देखे सुने भोगे हुए भोगोंकी वांछारूप आर्त रोद्र सोने ध्यानोंको आदि लेकर अनेक विकल्पजालमयी मन है । यह चंचलमनरूपी हस्ती उसको भेद विज्ञानकी भावनारूप अंकुशके वलसे वशमें करो, अपने आधीन करो। जिसके वश करनेसे सव इन्द्रियां वशमें हो सकती हैं, जैसे जड़के टूट जानेसे वृक्षके पत्ते आप ही सूख जाते हैं । इसलिये निज शुद्धात्मकी भावनाके लिये जिस तिस तरह मनमो जीतना चाहिये । ऐसा ही अन्य जगह भी कहा है, कि उस उपायसे उदास नहीं होना । जगत्से उदास होकर मन जीतने का उपाय करना ।।१४०॥ अथ हे जीव विषयासक्तः सन् कियन्तं कालं गमिष्यसीति संबोधयतिविसयासत्तउ जीव तुहूँ कित्तिउ काल गमीसि । सिव-संगमु करि णिञ्चलउ अवसई मुक्खु लहीसि ॥११॥ विषयासक्तः जीव त्वं कियन्तं कालं गमिष्यसि । शिवसंगम पुरु निश्चलं अवश्यं मोक्षं लभसे ।।१४।। आगे जीवको उपदेश देते हैं, कि हे जीव, तू विषयों में लीन होकर अनन्त काल तक भटका, और अब भी विषयासक्त है, सो विषयासत हा कितने गालकर
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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