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परमात्मप्रकाश
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___अब श्रीगुरु उन्हीं तीनोंको क्रमसे कहते हैं- ( योगिन् ) हे योगी, तूने (मोक्षोऽपि) मोक्ष और (मोक्षफलं) मोक्षका फल तथा (मोक्षस्य) मोक्षका (हेतुः) कारण (पृष्टं) पूछा, (तत्) उसको (जिनभाषितं) जिनेश्वरदेवके कहे प्रमाण (त्वं) तू (निशृणु) निश्चयकर सुन, (येन) जिससे कि (भेदं) भेद (विजानासि) अच्छी तरह जान जावे ।
भावार्थ -श्रीयोगीन्द्रदेव गुरु, शिष्यसे कहते हैं कि हे प्रभाकरभट्ट; योगी शुद्धात्माकी प्राप्तिरूप मोक्ष, केवलज्ञानादि अनन्तचतुष्टयका प्रगटपना स्वरूप मोक्ष-फल,
और निश्चय व्यवहाररत्नत्रयरूप मोक्षका मार्ग, इन तीनोंको क्रमसे जिनआज्ञाप्रमाण तुझको कहूँगा । उनको तू अच्छी तरह चित्त में धारण कर, जिससे सब भेद मालूम हो जावेगा ॥ २॥
अथ धर्मार्थकाममोक्षाणां मध्ये सुखकारणत्वान्मोक्ष एवोत्तम इति अभिप्रायं मनसि संप्रधार्य सूत्रमिदं प्रतिपादयति
धम्मह अत्थहं कामहं वि एयहं सयलहं मोक्खु । उत्तमु पभणहिं णाणि जिय अगणे जेण ण सोक्खु ॥ ३ ॥ धर्मस्य अर्थस्य कामस्यापि एतेषां सकलानां मोक्षम् ।।
उत्तम प्रभणन्ति ज्ञानिनः जीव अन्येन येन न सौख्यम् ।। ३ ।।
अव धर्म अर्थ काम और मोक्ष इन चारोंमेंसे सुखका मूलकारण मोक्ष ही सबसे उत्तम है, ऐसा अभिप्राय मनमें रखकर इस गाथा-सूत्रको कहते हैं- (जीव) है जीव, (धर्मस्य) धर्म (अर्थस्य) अर्थ (कामस्य अपि) और काम (एतेषां सकलानां) इन सब पुरुषार्थों में से (मोक्ष उत्तम) मोक्षको उत्तम (ज्ञानिनः) ज्ञानी पुरुष (प्रभणति) कहते हैं, (येन) क्योंकि (अन्येन) अन्य धर्म अर्थ कामादि पदार्थों में (सखं) परमसुख (न) नहीं है।
भावार्थ-धर्म शब्दसे यहां पुण्य समझना, अर्थ शब्दसे पूण्य का फल राज्य वगैरह सम्पदा जानना, और काम शब्दसे उस राज्यका मुख्य फल स्त्री कपड़े सुगन्वितः माला आदि वस्तुरूप भोग जानना । इन तीनोंसे परमसुख नहीं है, क्लेशरूप दुःख हा है, इसलिये इन सबसे उत्तम मोक्षको ही वीतरागसर्वज्ञदेव कहते हैं, क्योंकि मोक्षम जुदा जो धर्म अर्थ काम हैं, वे माकुलताके उत्पन्न करनेवाले हैं, तथा वीतराग परमा