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[ १०४ ] आगे इसी कथनको दृढ़ करते हैं-( येन ) जिस पुरुषने (विषयकषायेषु गच्छत्) विषय कषायोंमें जाता हुआ (मनः) मन (निरंजने धृतं) कर्मरूपी अंजनसे रहित भगवान्में रक्खा, (एतावदेव) और ये ही (मोक्षस्य कारणं) मोक्षके कारण हैं, (अन्यः) दूसरा कोई भी (तन्त्रं न) तन्त्र नहीं है, (मन्त्रः न) और न मन्त्र है । तन्त्र नाम शास्त्र व औषधका है, मन्त्र नाम मन्त्राक्षरोंका है। विषय कषायादि पर पदार्थोंसे मनको रोककर परमात्मामें मनको लगाना, यही मोक्षका कारण है।
भावार्थ-जो कोई निकट-संसारी जीव शुद्धात्मतत्त्वकी भावनासे उलटे विषय कषायों में जाते हुए मनको वीतरागनिर्विकल्प स्वसंवेदनज्ञानके बलसे पीछे हटाकर निज शुद्धात्मद्रव्यमें स्थापन करता है, वही मोक्षको पाता है, दूसरा कोई मन्त्र तन्त्रादिमें चतुर होनेपर भी मोक्ष नहीं पाता ।।१२३*३॥
इस तरह परमात्मप्रकाशकी टीकामें तीन क्षेपकोंके सिवाय एकसौ तेईस दोहा सूत्रोंमें बहिरात्मा अन्तरात्मा परमात्मारूप तीन प्रकारसे आत्माको कहनेवाला पहला महाधिकार पूर्ण किया ॥१॥
इति प्रथम महाधिकार