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________________ ६४व श्री पद्मावती पुरवाल जैन डायरेक्टरी परम्परानुगत वैवाहिक पद्धति एवं मांगलिक द्रव्य प्रसाधन सभ्य सुशिक्षित समाजों की तो बात ही कुछ और है, वनवासी कोट-भील आदि जातियों में भी वैवाहिक प्रथायें हैं और वह भी अपनी प्राचीन मर्यादाओं के अनुसार ही विवाहादि मांगलिक कार्यों में अपने पूर्वजों के पदचिह्नों पर चलते है। जैन एक विशेष धर्म-प्रभावना सम्पन्न समाज है और पूर्वाचार्यों द्वारा बाँधी हुई मर्यादाओं के अनुसार ही खान-पान से लेकर मरणपर्यन्त प्रत्येक कार्य में गतानुगत परिपाटी का हडता के साथ परिपालन का अभ्यासी है। यहाँ कुछ वैवाहिक प्रथा पर इस आशय से प्रकाश डाला जा रहा है कि जिससे सर्वसाधारण वैवाहिक आवश्यकताओं से अवगत हो जाय और कार्य क पूर्व ही उन वस्तुओं का संग्रह कर ले और सरलतापूर्वक उन कार्यों का सम्पादन करता जाय। इस लेख में वर और कन्या दोनों पक्षों के निमित्त संक्षिप्त संकेत दिये जा रहे है । यह बात अवश्य है कि न-धर्म का विपुल साहित्य हैं और धर्म के प्रत्येक विषय पर बड़े-बड़े प्रन्थ भी हैं । किन्तु सब समय, सभी स्थानों पर सबको न तो वह अन्य ही उपलब्ध होते हैं और कहाच ग्रन्थ भी प्राप्य हुए तो उन्हें समझने की सर्वसाधारण में न अनता ही होनी है। इसीलिए गृहस्याचार्यों की अपेक्षा की जाती है। क्योंकि वह उस पद्धति, परिपाटी के पंडित होते हैं । यच सरल हिन्दी में यदि यह अनिवार्य बातें आ जाती है तो इसके संकेतानुसार साधारण गृहस्य भी अपनी पूर्व की तैयारी तो कर ही सकता है। एक ही यहाँ उन बातों को लिपिबद्ध किया जा रहा है । references for कन्या और वर, दोनों ही पक्ष वाले गृहस्थ अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार सामग्री संग्रह करते हैं। इसलिए उभव पक्ष के हेतु निर्देश होना उचित है | प्रथम कन्या पक्ष के लिए और फिर वर पक्ष के निमित्त वर्णन किया जा रहा हूँ । कन्या पक्ष के लिए— यवं प्रथम भगवान के मंगल गीत होते हैं। (१) प्रथम वान नाग लेने की आती हैं। (अ) नांग में सद्गृहस्थ खाद्यपदार्थ आदि आवश्यक नृत्य संग्रह करता है और उनका शुद्धि संस्कार करना हैं | जैसे साफ करना, पिसवाना आदि । (आ) नौग लेने की क्रिया की विवाह का आरम्भ समझा जाता है । इसमें नाम उत्तरवाया जाना है और अपने को दुन्निकों को पत्र आदि भेजे जाते हैं। इससे ग्रह पता चल जाता है कि विवाह का हो गया है। (२) (अ) पीत पत्रिका भेजना। इसमें विवाह की मिति निश्चित होती है। यह पत्रिका लगन के साथ भी भेजी जाती है। (आ) लगन दो लिखवाना | एक संकेत के लिए भेन देना और एक नारियल १) रम्या तथा उसमें संकन बनाने के पूर्व लिखित भेजना = ), 1). ii) रुपया आदि प्रतिपत्रिका के साथ भेजे वो भेजे नहीं तो लगन के साथ नहीं ।
SR No.010071
Book TitlePadmavati Purval Jain Directory
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugmandirdas Jain
PublisherAshokkumar Jain
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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