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श्री पद्मावती पुरखाल जैन डायरेक्टरी इनको जाति से बहिष्कृत करने पर तुला हुआ था। इस विकट समस्या के समाधान के लिए श्री हजारीलालजी जैन आगरा के निवास स्थान पर एक सभा बुलायी गई। सभा ने निश्चय किया कि अगर श्री वाथूरामजी जैन समाज के लिए उपयोगी है, तो उनकी रक्षा की जाए, उनके पक्षका समर्थन किया जाए और “पद्मावती महासभा की स्थापना कर दी गई। इस सभा के सभापति चुने गए श्री भूधरदासजी एटा। साथ ही "पद्मावती-संदेश" नामक पत्र भी निकाला गया, जिसके सम्पादन का भार श्री भारतीय जी को सौपा गया। पत्र जारकी तथा बेसवां से काफी समय तक प्रकाशित हुआ। श्री मारतीयजी की संगठन शक्ति एवं सुलझे हुए विचारों के सद् प्रयास से फिरोजाबाद में जैन-मेले के अवसर पर परिपद् एवं महासभा का सौहादें पूर्ण एकीकरण हो गया।
समाज-सेवक, राष्ट्र-भक्त, तथा प्रभावशाली बत्ता होते हुए भी आप मौलिक रूप से साहित्यिक श्रेणी के महानुभाव हैं। जिस समय आप चतुर्थ श्रेणी के विद्यार्थी थे, उस समय श्री रघुवरदयालजी भट्ट जो कानपुर जा रहे थे, उनके साथ टूण्डला स्टेशन पर एक निन्दनीय घटना घटी, उसकी जानकारी आपने प्रकाशनार्थ "प्रताप" मे भेजी थी। जिसे स्व० श्री गणेशशंकरजी विद्यार्थी ने अपनी टिप्पणी के साथ प्रकाशित किया था। तत्कालीन प्रान्तीय सरकार ने इसका प्रतिकार भी किया, किन्तु जन-भावना सत्यता की ओर ही बनी रही। आप सर्व प्रथम लखनऊ से प्रकाशित "लखनऊ महासभा-समाचार" पत्र में सहयोगी के रूप में रहे। पुनः "देवेन्द्र" साप्ताहिक में एक वर्ष कार्य किया। तत्पश्चात् आपका जीवन पत्रकारितामय ही बन गया। सन् १९३८ से “वीर भारत" साप्ताहिक रूप में वेसा से प्रकाशित होता रहा है और सन् ४२ तक पद्मावती सभा तथा "वीर भारत" के प्रकाशन में रा० सा० श्री नेमीचन्द जी जलेसर एवं श्री पन्नालालजी "सरल" के सम्पर्क में सामाजिक प्रगति में भारी योग दिया है। देहरादून से प्रकाशित होनेवाले "नवभारत" साप्ताहिक के आप एक वर्ष तक सम्पादक पद पर रहे। इसके पश्चात् तो "जैन मार्तण्ड" हाथरस, "महावीर" विजयगढ तथा "प्रॉम्य जीवन" आगरा आदि कई पत्रों का सम्पादन आप द्वारा हुआ है।
__ सन् ४२ के पश्चात् से आपका समय व्यक्तिगत कार्यों में अधिक लगा, किन्तु "वीरभारत" का सम्पादन तथा अन्य सामाजिक कार्य भी वरावर होते रहे हैं। आपके पास ज्ञान एवं नवीन-योजनाओं का विपुल भण्डार है। समाज आपको अपने नेताओं में प्रतिष्ठित स्थान देवा है। प्रत्येक पंचायत एवं उलझे और विवादास्पद विपयो मे आपकी राय महत्वपूर्ण मानी जाती है। आप निष्पक्ष दृष्टि के सत्यवादी तथा निर्भीक नेता हैं। समाज को आपसे महान् आशाएँ हैं। यह और भी प्रसन्नता एवं गौरव की बात है किआप अपना शेष समय साहित्य-सेवा में लगाना चाहते है । राष्ट्र-भाषा हिन्दो तथा गो माता के प्रति आपकी श्रद्धा अनुकरणीय एवं प्रशंसनीय है।