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________________ ५६२ श्री पद्मावती पुरवाल जैन डायरेक्टरी सम्मान का स्थान बनाया है। आप अपनी तहसील के आदर्श प्रधानों में माने जाते रहे हैं। शासन में भी आपका सम्माननीय स्थान हैं। ब्रिटिश काल में आप ३८ गाँवों की अत्याचार निरोध समिति के प्रधान मन्त्री थे । उस समय आपने अत्याचार के विरोध में जनता में एक नवीन भावना और साहस का संचार किया था। समाज-सेवा की वृहद् भावना को लेकर आजकल आप टूण्डला मे निवास कर रहे हैं। श्री पी० डी० जैन इण्टर कालेज के संस्थापकों में आपका नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है । इस संस्था के प्रचार मन्त्री भी आप रहे हैं। वर्तमान समय मे आपकी दिन चर्या का विशेष भाग पूजन एवं शास्त्र प्रवचन में लग रहा है । आप विनम्र स्वभाव एवं शान्त प्रकृति के सदैव प्रसन्न रहनेवाले धर्म निष्ठ महानुभाव हैं। आदर्श समाज सेवी और सन्तोषपूर्ण वृत्ति के परोपकारी सज्जनों में आपकी गणना की जाती है। आप कर्मठ और सत्य प्रिय सफल राजनीतिज्ञ हैं । अतः उपरोक्त सभी गुणों का संगम श्री पाण्डेयजी को सर्वप्रिय और श्रद्धास्पन बनाए हुए है। श्री पाण्डेयजी जैसी विभूति से समाज भारी आशा रखता हुआ, गौरव अनुभव करता है। श्री पांडेय उग्रसैन जी जैन शास्त्री, टूंडला आप श्रद्धेय मुनि श्री ब्रह्मगुलाल जी के वंशज हैं। आपके इस पवित्र कुल में श्री पाण्डेय रूपचन्द जी जैन, पाण्डेय केशरी श्री शिवलालजी जैन आदि उच्च कोटि के विद्वान तथा समाज निर्माता हो चुके हैं। आपके पूज्य पिता श्री सुखनन्दनलाल जी भी ऐसी ही एक विभूति थे । श्री शास्त्री जी का जन्म ६ नवम्बर १९२१ में नगला स्वरूप जिला में हुआ । नत्र आप अपनी माताजी के गर्भ में थे, उसी समय आपके पिताजी का स्वर्गवास हो गया । यहाँ से आपकी अपने भाग्य के साथ प्रतिस्पर्धा आरम्भ होती है। दुर्भाग्य ने अपनी प्रवल शक्ति का परिचय देते हुए आपको जन्म से नौ माह पश्चात् माता की दुलार भरी गोंद से खच लिया | अब आप माता-पिता के अहास वियोग को सहन करते हुए शनै-शनै स्नेही चाचा और दयालु ताऊ की छाया में पलने लगे । वाल्यावस्था से किशोरावस्था तक आपकी शिक्षामर्थर, अहारन, टेहू तथा सहारनपुर में ही होती रही, तत्पश्चात् आपका ध्यान अपने पारि बारिक कर्म की ओर गया — और आपने धर्म, ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड का अध्ययन प्रारम्भ कर दिया। आप तीक्ष्ण बुद्धि तो थे ही पुनः जीवन-निर्माण और धर्म तथा समान सेवा की अभिरुचि ने आपको कर्मठ और लगनशील भी बना दिया, फलस्वरूप थोड़े ही समय में आपने अनेकों गुण एवं चमत्कारिक विद्याओं का संग्रह कर लिया। प्रतिष्ठा. हवन, मुहूर्त तथा ज्यौतिष सम्वन्धी कार्य और विवाह कर्म में निपुणता प्राप्त करते हुए समाज सेवा का पावन व्रत लेकर बड़ी तत्परता से कार्य करना आरम्भ कर दिया।
SR No.010071
Book TitlePadmavati Purval Jain Directory
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugmandirdas Jain
PublisherAshokkumar Jain
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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