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________________ श्री पद्मावती पुरवाल जैन डायरेक्टरी ५५६ सर सेठ हुकुमचन्दजी की निजी शास्त्र सभा में आप यदाकदा जाने लगे। आपके शास्त्रीय ज्ञान से प्रभावित होकर १९४९ में आपको सर सेठ हुकुमचन्दजी ने अपने यहाँ रख लिया । उन दिनों समाज के प्रसिद्ध विद्वान् पं० खूबन्दजी सिद्धान्तशाली, पं० देवकीनन्दनजी सिद्धान्तशास्त्री, पं० जीवनधर जी न्यायतीर्थ, पं० वन्शीधरजी न्यायालंकार के साथ आप भी सेठ सा० को सभा में शास्त्र चर्चा करते थे। आप लगभग दस वर्प सेठ सा० के पास रहे। यहीं आपने अतिरिक्त समय में इंगलिश लिटरेचर लेकर वी० ए० तथा संस्कृत में एम० ए० किया । वनारस से सम्पूर्ण शास्त्री तथा आचार्य के दो खण्ड किये। सन् १९५८ में आप समन्तभद्र संस्कृत विद्यालय के प्रिंसिपल होकर चले गये। सर सेठ सा० नहीं चाहते थे कि आप उन्हें छोड़कर अन्यत्र जावे, लेकिन आपके बहुत आग्रह करने पर सेठ सा० ने आपको विदा दी। देहली में आपका बहुन सम्मान रहा। प्रसिद्ध उद्योगपति लाला राजेन्द्रकुमारजी को उनकी प्रार्थना पर आप उन्हें नियमित स्वाध्याय कराने लगे। वहीं आपने पी० एच०डी० के लिये उपक्रम किया वथा अत्यन्त व्यस्त रहते हुये भी आचार्य का अन्तिम खण्ड दिया। सम् १९६३ में आप सेठ राजकुमारसिंह जी एम० ए० एल० एल० बी०, के आग्रह से उनकी पारमार्थिक संस्थाओं के संयुक्त मन्त्री नियुक्त हुये। इन दिनों आप मा० ५० सि० सभा के मुख पत्र 'जैन दर्शन' के प्रधान सम्पादक हैं। एवं भारतवर्षीय दि० जैन महासभा के मुख पन जैन गजट' के सहायक सम्पादक हैं । उक्त दोनों समाओं के साथ शास्त्री परिषद, विद्वत् परिषद, भा०प० दि० जैन परिपद एवं अखिल भारतीय पद्मावती पुरवाल पंचायत की प्रबन्ध कारिणी के सदस्य हैं।। इन्दौर में रहकर आपने "आचार्य कुन्द कुन्द और उनके समयसार" पर शोध कार्य किया, फलस्वरूप आगरा विश्वविद्यालय ने आपको "डाक्टर आफ फिलासफी" की उपाधि से सम्मानित किया है। वर्तमान में आप इन्दौर में अपने मुद्रणालय ( Printing Press ) का संचालन कर रहे हैं। आपके दो सुपुत्र क्रमशः चि० दिनेशकुमार, राजेशबहादुर सर्विस कर रहे हैं। तथा तृतीय अध्ययन कर रहे हैं।
SR No.010071
Book TitlePadmavati Purval Jain Directory
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugmandirdas Jain
PublisherAshokkumar Jain
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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