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________________ 82/ आचार्य कुन्दकुन्द पारस्परिक आदान-प्रदान की दिशा मे कोई भी विचार नही किया गया, जो कि अत्यावश्यक ही नही, कुन्दकुन्द के दार्शनिक रूप के वैशिष्ट्य-प्रदर्शन के लिए अनिवार्य भी है । इसी प्रकार कुन्दकुन्द की भाषा काभापा-वैज्ञानिक विश्लेषण, व्रजभाषा एव उसके भक्ति-प्रधान साहित्य के ऊपर प्रभाव, कुन्दकुन्द के साहित्य का सर्वांगीण सास्कृतिक, सामाजिक एव काव्यात्मक मूल्याकन भी अभी तक नही हो पाया है । इन पक्षो पर भी जब तक विस्तृत प्रामाणिक अध्ययन नही हो जाता, तब तक हम कुन्दकुन्द के बहुआयामी महान् व्यक्तित्व से अपरिचित ही रहेगे। ___वस्तुत आचार्य कुन्दकुन्द केवल श्रमण-परम्परा के ही महान् सवाहक आचार्य नही, अपितु भारतीय संस्कृति, समाज एव इतिहास के विविध पक्षो को प्रकाशित करने वाले एक महपि, योगी एव आचार्य-लेखक भी हैं । यही नही, लोक-व्यवस्था तथा द्रव्य-व्यवस्था के क्षेत्र मे उनका जो गहन-चिंतन एव विश्लेषण है, वह भी वेजोड है । भौतिक-जगत् के अनेक प्रच्छन्न रहस्यो का उन्होने जिस प्रकार उद्घाटन एव प्रकाशन किया है, उमसे भारतीय प्राच्य-विद्या, विशेष रूप से जैन-विद्या गौरव के अन-शिखर पर प्रतिष्ठिन हुई है। ऐसे महिमा-मण्डित आचार्य के द्विसहस्राब्दी समारोह के प्रसग मे यदि उनके सर्वांगीण पक्षो को प्रकाशित किया जा सके, तो वह इस सदी की एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जायेगी।
SR No.010070
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Vidyavati Jain
PublisherPrachya Bharti Prakashan
Publication Year1989
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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