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________________ 76 / आचार्य कुन्दकुन्द जहाज आदि एक भी कदम आगे न बढ पाते, यदि धर्मद्रव्य उनके गमन मे सहायक न हो । यदि धर्मद्रव्य न हो, तो आकाश, पाताल एव मर्त्यलोक मे जीवो एव पुद्गलो का सर्वथा गमनागमन ही रुक जाए । धर्म- द्रव्य और आधुनिक विज्ञान उक्त धर्मद्रव्य के गुणो का समर्थन आधुनिक भौतिक विज्ञान ने भी किया है। इन वैज्ञानिको का कथन है कि प्रकाश-किरणें शून्य में नहीं, बल्कि वे आकाश मे व्याप्त हैं तथा Ether of space के जरिए पृथ्वी पर पहुँचती है | Ether के विषय से वैज्ञानिको की मान्यता है कि वह ( Ether) कोई पदार्थ या दृश्य वस्तु नही है । वह तो सर्वत्र व्याप्त है तथा सभी की गमनक्रिया में सहायक है | " उक्त Ether के प्राय सभी गुण धर्मद्रव्य मे वर्तमान हैं । धर्मद्रव्य के समान ही वह अरूपी ( Formless ) एव वस्तुओ से भिन्न है । धर्मद्रव्य के समान वह भी निष्क्रिय, अनन्त एव आकाशव्यापी और अपौद्गलिक है तथा धर्मद्रव्य के समान ही वह शक्तिशाली है । जैसा कि बतलाया गया हैEther is not a kind of matter (पुदगल रूपी) Being nonmaterial, its properties are quite unique 2 अधर्म - द्रव्य (Medium of Rest ) विश्व व्यवस्था मे जो महत्त्व धर्मद्रव्य का है, वही महत्त्व अधर्म द्रव्य का भी है । अधर्म द्रव्य का तात्पर्य यहां अनाचार, दुष्टाचार या साम्प्रदायिक सकीर्णता से नहीं है, बल्कि वह एक पारिभाषिक वैज्ञानिक शब्द है, जो जीवो एव पुद्गलो को स्थिर करने में सहायक होता है । जैनाचार्यों के अनुसार यह अधर्म द्रव्य भी अमूर्त, अदृश्य तथा लोकव्यापी है । यह अधर्मद्रव्य आइस्टाइन के Field of Gravitation के सिद्धान्त से समर्थित है | 3 1 महावीर स्मृति ग्रन्थ, पू० 278 2. महावीर स्मृति ग्रंथ, पृ० 123 3. पचास्तिकाय, गाथा - 91
SR No.010070
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Vidyavati Jain
PublisherPrachya Bharti Prakashan
Publication Year1989
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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