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________________ ·68 / आचार्य कुन्दकुन्द श्री झवेरी आदि प्रमुख हैं। उन्होंने समय-समय पर तुलनात्मक निबन्ध आदि लिखकर विद्वानो - वैज्ञानिको को इस दिशा मे विचार करने के लिए पर्याप्त प्रेरणाएँ प्रदान की है । उन्होने जीव - आत्मा की खोज के प्रसग मे बतलाया है कि आधुनिक विज्ञान भले ही आत्म-तत्त्व के साक्षात्कार मे सफल न हो सका हो, किन्तु उनकी वर्तमान खोजो से यह अवश्य ही ज्ञात हुआ है कि जब कोई प्राणी जन्म लेता है, तो उसके साथ एक विद्युत् चक्र (Electric-charge) रहता है, जो मृत्यु के समय लुप्त हो जाता है । इस विषय मे डॉ० नन्दलाल का कथन है कि Electric-charge तो Conservation of energy के सिद्धान्त की दृष्टि से नाशवान नही है । तव फिर वह charge जाता कहाँ है1 ?" इस समस्या के समाधान के लिए भी प्रयोगशालाओ मे पुन सयन्त्रो का निर्माण किया जा रहा है । हो सकता है कि इन सयन्त्रो से उक्त समस्या का कुछ समाधान निकल सके । किन्तु विश्वास यही किया जाता है कि ये नवीन यन्त्र भी जिस शक्ति का पता लगावेंगे, वह आत्मा नही होगी। क्योकि वह तो निश्चित रूप से अमूत्तिक, अपी है। हाँ, उस शक्ति की तुलना तैजस-शरीर ( Electric Body) से अवश्य की जा सकती है, जो कि आत्मा से घनिष्ठ सम्बन्ध रखता है । फिर भी आत्मा की खोज के प्रयास में इस तथ्य की खोज भी अपना महत्त्व रखती है । जैन-दर्शन-विज्ञान के क्षेत्र मे उक्त तैजस शरीर भी कोई नवीन खोज नही है । क्योकि जैनाचार्यों ने पाँच प्रकार के शरीरो के वर्णन मे स्वय उसे चौथा स्थान दिया है और महस्राब्दियो पूर्व ही उसका विस्तृत विश्लेषण कर दिया है । " Sir O' Loz जैसे कुछ वैज्ञानिको की यह धारणा है कि भले ही आत्मा का साक्षात्कार करने मे विज्ञान असफल रहा हो, फिर भी आत्मा वा अस्तित्व होना अवश्य चाहिए। ' Protoplasm is nothing but a viscous fluid which contains every living cell' के सिद्धान्त 1 महावीर स्मृतिग्रन्थ, पृ० 120 2 तत्त्वार्थराजवात्तिक 2/36
SR No.010070
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Vidyavati Jain
PublisherPrachya Bharti Prakashan
Publication Year1989
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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