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________________ 66 | आचार्य कुन्दकुन्द शरीर रूपी उपकरण है । उपकरण के शिथिल होने से चालक तरुण जैसा और वंद भी तरुण जैसा कार्य नही कर मकता । इसमे आत्मा का उससे क्या सम्बन्ध तरुण व्यक्ति को भी यदि जीर्ण-शीर्णं धनुप- प्रत्यचा- वाण दे दिया जाय, तो वह तरुण भी पाँच बाण एक साथ नही छोड सकता । अत हे प्रदेशी तुम्हारा तर्क सदोष है । शरीर और आत्मा निश्चय ही भिन्न है | राजा प्रदेशी मृत शरीर एव जीवित शरीर के वजन मे कोई अन्तर नही पाया गया। यदि शरीर एव आत्मा भिन्न-भिन्न होते, तो आत्मा का वजन जुड जाने से जीवित व्यक्ति को मृत व्यक्ति से अधिक वजनदार होना चाहिए किन्तु ऐसा नही देखा जाता । अत इस प्रयोग के निष्कर्ष से हे कुमार, ऐसा विदित होता है कि शरीर तथा आत्मा अभिन्न है । केशी हे राजन्, जिस प्रकार चमडे की मशक मे हवा भरकर तौलने तथा उस हवा को निकालकर तौलने से उसके वजन मे कोई अन्तर नही होता, उसी प्रकार मृत अथवा जीवित व्यक्ति के शरीर के वजन मे भी अन्तर कैसे होगा ? अत निश्चय ही शरीर और आत्मा भिन्न हैं । राजा प्रदेशी हे कुमार श्रमण, व्यक्ति के क्रमश अग अग काट डालने पर भी कही भी उसमे नही देता । इसी से सिद्ध है कि आत्मा जीव दिखाई शरीर और आत्मा अभिन्न हैं । केशी प्राणियो मे जीव आत्मा उसी प्रकार अदृश्य रूप मे छिपा रहता है जिस प्रकार काष्ठ मे अग्नि । काष्ठ को टुकडी टुकडो में काट डालने पर भी क्या उसमे कही अग्नि दिखलाई पडती है ? उसी प्रकार प्राणियो
SR No.010070
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Vidyavati Jain
PublisherPrachya Bharti Prakashan
Publication Year1989
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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