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58 / आचार्य कुन्दकुन्द
उल्लेख किया है । इससे चोरी एव डकैती होने तथा इस प्रकार के घृणित समाज-विरोधी कार्य करने वालो के लिए बेडी-वर्णन के माध्यम से कठोरदण्ड व्यवस्था का भी सकेत किया है। लिंग पाहुड मे एक शिथिलाचारी साधु की भर्त्सना हेतु बँधुआ मजदूर का उदाहरण दिया गया है। विदित होता है कि कुन्दकुन्द - काल मे बंधुआ मजदूरी की प्रथा थी ।
इस प्रकार कुन्दकुन्द की रचनाओ मे उपलब्ध राजनीतिक, सामाजिक एव सास्कृतिक सन्दर्भों पर प्रकाश डालने का प्रयत्न किया गया । स्थानाभाव के कारण यहाँ केवल एक सक्षिप्त झांकी मात्र प्रस्तुत की गई है । यदि मधुकरी-वृत्ति से उनका पूर्ण सग्रह कर उसका समकालीन भारतीय इतिहास एव सस्कृति के परिप्रेक्ष्य मे तुलनात्मक अध्ययन किया जाय, तो एक प्रामाणिक शोध-प्रबन्ध तैयार हो सकता है ।