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आचार्य कुन्दकुन्द /53
(3) न्याय (तर्कणा-शक्ति की अभिवृद्धि के लिए), (4) धर्म (जीवन मे आचार एव अध्यात्म के जागरण के लिए), (5) दर्शन (विचारो की गहन अनुभूति के लिए), (6) गणित (राष्ट्रीय एव सामाजिक व्यवहार के सचालन के लिए)।
इसी प्रकार निक्षेप, नय, प्रमाण, शब्दालकार,नाटक, पुराण आदि के अध्ययन पर भी जोर दिया जाता था।
लगता है कि कुन्दकुन्द के समय मे लेखन-सामग्री आज के समान प्रचुर मात्रा मे उपलब्ध नहीं थी । स्याही एव मोरपंख अथवा काप्ठ-निर्मित क्लम सम्भवत व्यय-साध्य होने के कारण विशिष्ट-कोटि के लेखको को ही उपलब्ध रहती होगी। किन्तु सामान्य जनो के लिए खडिया (chalk) से दीवाल अथवा पत्थर पर लिखने की परम्परा थी।
विविध दार्शनिक मत
आचार्य कुन्दकुन्द ने अपने वर्णन-प्रसगों मे समकालीन प्रचलित विविध दार्शनिक मतो के उल्लेख किए हैं। उनसे विदित होता है कि उन्होने उनका भी अध्ययन किया था। उस समय भारत मे 363 दाशनिक मत प्रचलित थे। उनका वर्गीकरण कुन्दकुन्द ने इस प्रकार किया है -
1 क्रियावादी-180 मत 2 अक्रियावादी-84 मत 3 अज्ञानी- 67 मत 4 वैनयिक- 32 मत
363 मत
दुख-प्रकार
आचार्य कुन्दकुन्द का कथन है कि "यह ससार केवल दुखो का ही घर
1 रयणसार, गाथा 143 2 समयसार, गाथा 356,365 3 भावपाहुउ, गाथा-135