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________________ 5. कुन्दकुन्द-साहित्य का सास्कृतिक - मूल्याकन जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है कि आचार्य कुन्दकुन्द युग-प्रधान के रूप मे माने गए हैं। उन्होने मानव-जीवन को अमृत-रम मे सिंचन करने हेतु अध्यात्म-रस का जैसा अजस्र स्रोत प्रवाहित किया, वह भारतीय-चिन्तन के क्षेत्र मे अनुपम है। जीवन एव जगत् तथा जड एव चेतन का गम्भीर अध्ययन, मानव-मनोविज्ञान का अद्भुत विश्लेपग और प्राणिमात्र के प्रति उनकी अविरल करुणा की भावना अभूतपूर्व है । यही कारण है कि प्राच्य एव पाश्चात्य चिन्तको ने उन्हे मानवता का महान् प्रतिष्ठाता माना ____ आचार्य कुन्दकुन्द ने अपने लगभग छयान्नवे वर्ष के आयुष्य मे पूर्वोक्न अनेक रचनाओ का प्रणयन किया, जिनका मूल विपय द्रव्यानुयोग एव चरणानुयोग है । यद्यपि इस प्रकार का साहित्य विचार-प्रधान होने के कारण बहुत अधिक लोकप्रिय नही होता क्योकि सामान्य-जनो का उसमे सहज-प्रवेश नही हो पाता। किन्तु कुन्दकुन्द की यह विशेषता है कि उन्होंने अपनी समस्त रचनाओ मे इतनी सरसता एव मधुरता घोल दी और उसमे समकालीन लो-प्रचलित सरल भाषा और दैनिक लौकिक जीवन के उदाहरण-प्रसगों से उसे इस प्रकार सनाथ किया है कि आबाल-वृद्ध नर-नारी सभी उसका रसास्वादन कर अघाते नही । __ इसमे मन्देह नहीं कि पिछले लगभग 4-5 दशको मे कुन्दकुन्द साहित्य का विस्तृत अध्ययन, तुलनात्मक चिन्तन एव मनन तथा शोध और प्रकाशन हुआ है। किन्तु इन अध्ययनो का मुख्य दृष्टिकोण दर्शन एव अध्यात्म तक
SR No.010070
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Vidyavati Jain
PublisherPrachya Bharti Prakashan
Publication Year1989
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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