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________________ आचार्य कुंदकुंददेव के साम्राज्य में आशा की किरण के सहारे रात भर जागृत रहते हुए रात्रि व्यतीत की। एक सप्ताह की प्रतीक्षा के बाद आज आचार्य देव पधारेंगे ही इस आशा से हजारों-श्रावक जन आस-पास के गांवों से एकत्रित हो गये । और वे पर्वत पर ही रुके रहे; घर लौटे ही नहीं।। • आकाश में कभी कदाचित उल्कापात होता अथवा खद्योत-जुगनू चमकते तो सभी चौंककर उस ओर ही देखने लगते । तीव्र उत्कंठा के साथ प्रतीक्षा के बावजूद भी आचार्यश्री का शुभागमन हुआ ही नहीं । रात बीतती ही जा रही थी। प्रभात कालीन प्रकाश मंद-मंद गति से आना चाहता था । स्वर्ण किरीट धारण किए हुए उषा काल का आगमन हुआ । पक्षी समूह ने सुप्रभात का गान किया । तरु-लताओं में नवीन चैतन्य का संचार हुआ । सूर्य के शुभागमन का समय समीप था । उस समय आकाश में दूर कहीं समुद्भूत कोई आनंदकारी, मंद, मधुर ध्वनि तरंग को अधीरता से सुना और तत्काल ध्वनितरंग की दिशा में अपनी दृष्टि लगायी । ___ज्योतिर्लोक से मानों नक्षत्र मण्डल ही उतर कर आ रहा होऐसा प्रकाशपुंज भूमि पर उतर आया । सबकी आंखें आश्चर्यकारक दृष्टि से उस ज्योतिपुंज को ही देख रही थीं। समीप आते-आते वह ज्योतिपुंज मनुष्याकार दिखने लगा | उसे देखकर हर्षोल्हासपूर्वक जनसमूह ने “आचार्य भगवान की जय ! कुन्दकुन्द भगवान की जय!" ऐसा उद्घोष किया । लोग बार-बार जयघोष करने में अत्यंत आनंद का अनुभव कर रहे थे। सभी आनंद विभोर हो गये थे । इस उद्घोष ध्वनि के पश्चिम पर्वत श्रेणी पर टकराकर प्रतिध्वनिरूप से
SR No.010069
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM B Patil, Yashpal Jain, Bhartesh Patil
PublisherDigambar Jain Trust
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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