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________________ ३७ आचार्य कुंदकुंददेव करने की तथा आचार्य जिनचंद्र के दर्शन करने की तीव्र अभिलाषा उत्पन्न हुई है। कृपया शीघ्र व्यवस्था कीजिए, मेरा जीवन धन्य हो जायेगा। दूसरे ही दिन पति-पत्नी दोनों पेनगोंडे पहुँच गये । वहाँ भगवान पार्श्वनाथ की अत्यंत भक्ति से पूजा की और भक्ति तथा कृतज्ञतापूर्वक आचार्य जिनचंद्र के दर्शन किए । अत्यन्त विनय से और उत्कंठित भाव से शान्तला देवी ने स्वप्न समाचार बताया । अष्टांग निमित्तज्ञानी आचार्य ने स्वप्नफल सुनाया। . ___ "आपके गर्भ से आसन्न भव्य जीव जन्म लेनेवाला है। वह तीर्थकर द्वारा उपदेशित अनादि-अनंत, परमसत्य, वीतराग धर्म का प्रवर्तक बनेगा । और विशेष बात यह है कि भगवान महावीर और गौतम गणधर के बाद उसका ही नाम प्रथम लिया जायगा । इसकारण यह कोण्डकुन्दपुरनगर इतिहास में प्रसिद्ध होगा। पतितोद्धारक यह महापुण्यवान जीव जब पूर्वभव में कौण्डेश नामक ग्वाला था, तब उसने एक दिगम्बर मुनीश्वर को शास्त्रदान दिया था | उस दान के पुण्य-परिणामस्वरूप ही कोण्डकुन्द नगर में वह तुम्हारे यहाँ जन्म ले रहा है । यह अपूर्व योग है । " ___ “प्रत्येक जीव को अपने परिणामों का फल मिलता है" यह त्रिकालाबाधित सिद्धान्त सहज रीति से समझ में आता है । ऐसा सातिशय पुण्यशाली जीव आपके वंश में जन्म लेगा इससे आपके पवित्र परिणामों का भी परिचय होता है | ३०-३२ वर्ष के इस दीर्घ जीवन में इन तीन महीनों में शास्त्रदान के जैसे उत्साही भाव परिणाम हुए वैसे परिणाम पहले कभी आपके मनोमंदिर में हुए थे क्या ? इस
SR No.010069
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM B Patil, Yashpal Jain, Bhartesh Patil
PublisherDigambar Jain Trust
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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