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________________ आचार्य कुंदकुंददेव अध्ययन करेंगे तो भी सब खुलासा हो जायगा । लेखक की यह कृति स्वतंत्र होनेपर भी यथार्थ तात्विक परंपरा से अत्यंत निगडित है । पंरपरा तो सुरक्षित रखी है, लेकिन अन्धश्रद्धा को किंचितमात्र भी स्थान नहीं दिया हैं । भावात्मक वास्तविकता - आचार्य संबंधी भक्तिभाव प्रगट करते समय वास्तविकता का लेखक को विस्मरण नहीं हुआ है। भक्ति, बहुमान, सन्मान, आदर सब कुछ होने पर भी सब तर्काधिष्ठित, सुसंगत और शास्त्र सम्मत है। वीतराग तत्त्व जनमानस में ससन्मान सहज विराजमान हो जाय, यह लेखक की भावना सफल हुई है । किसी भी प्रकरण में आचार्य कुंदकुंददेव को छोटा बनाने का अपराध नही किया है । बालक कुंदकुंद को माँ लोरियाँ सुनाती है, वे लोरियाँ सहृदय वाचकों को प्रभावित करती हैं। इससे मुनिश्वरों के बाल - जीवन का भावभासन स्पष्ट होता है। मुनि जीवन में होनेवाली ग्रंथरचना की स्वाभाविकता पाठकों के हृदय को झकजोर देती है और मुनियों की महिमा मन में वृद्धिगंत होती है । विदेहगमनरूप ऐतिहासिक घटना के लिए अनेक शिलालेखों का और ग्रंथों का उल्लेख आचार्य की विशेषता में चार चांद लगाता है । समयसार आदि ग्रंथ रचने की पार्श्वभूमि प्रभावक सिद्ध हुई है। इससे वाचकों को शास्त्र स्वाध्याय की प्रेरणा मिलती है। पंचास्तिकाय से लेकर भक्तिसंग्रह पर्यंत का ग्रंथ परिचय भी मार्मिक बन पड़ा है। संक्षेप में इतना लिखना आवश्यक है कि लेखक अपने उद्देश्य में सफल हुए हैं।
SR No.010069
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM B Patil, Yashpal Jain, Bhartesh Patil
PublisherDigambar Jain Trust
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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