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________________ ७८ ] प्राचार्य कुन्दकुन्द और उनके पंच परमागम कायत्व का घोतक है । अस्तित्व को सत्ता अथवा सत् भी कहते हैं । यही सत् द्रव्य का लक्षण कहा गया है, जो कि उत्पाद, व्यय और ध्रुवत्व से युक्त होता है। इसी सत् या सत्ता की मार्मिक व्याख्या प्रस्तुत की गई है । ध्यान रहे, इसी सत् - सत्ता या अस्तित्व को द्रव्य का लक्षण माना गया है, कायत्व को नहीं । द्रव्य के लक्षण में कायत्व को सम्मिलित कर लेने पर कालद्रव्य द्रव्य ही नहीं रहता, क्योंकि उसमें कायत्व (बहुप्रदेशीपना) नहीं है । इसके बाद १२वीं-१३वी गाथा में गुणों और पर्यायों का द्रव्य के साथ भेदाभेद दर्शाया गया है और १४वीं गाथा में तत्सम्बन्धी सप्तभंगी स्पष्ट की गई है । तदुपरान्त सत का नाश और असत् का उत्पाद सम्बन्धी स्पष्टोकरणों के साथ २०वी गाथा तक पंचास्तिकाय द्रव्यों का सामान्य निरूपण हो जाने के बाद २६वीं गाथा तक कालद्रव्य का निरूपण किया गया है। इसके बाद छह द्रव्यों एवं पंचास्तिकायों का विशेष व्याख्यान प्रारम्भ होता है । सबसे पहले जीवद्रव्यास्तिकाय का व्याख्यान है, जो अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होने से सर्वाधिक स्थान लिए हुए है और ७३वीं गाथा तक चलता है । ४७ गाथाओं में फैले इस प्रकरण में आत्मा के स्वरूप को जीवत्व, चेतयित्व, उपयोगत्व, प्रभुत्व, कर्तृत्व, भोक्तृत्व, देहप्रमाणत्व, अमूर्तत्व और कर्मसंयुक्तत्व के रूप में स्पष्ट किया गया है। उक्त सभी विशेषणों से विशिष्ट आत्मा को संसार और मुक्तइन दोनों अवस्थाओं पर घटित करके समझाया गया है। इसके बाद ६ गाथाओं में पुद्गलद्रव्यास्तिकाय का वर्णन है और ७ गाथानों में धर्म-अधर्म दोनों ही द्रव्यास्तिकायों का वर्णन है तथा ७ गाथानों में ही आकाशद्रव्यास्तिकाय का निरूपण किया गया है । इसके बाद ३ गाथाओं की चूलिका है, जिसमें उक्त पंचास्तिकायों का मूर्तत्व-अमूर्तत्व, चेतनत्व-अचेतनत्व एवं सक्रियत्व-निष्क्रियत्व बतलाया गया है। तदनन्तर ३ गाथाओं में कालद्रव्य का वर्णन कर अन्तिम २ गाथाओं में प्रथम श्रुतस्कन्ध अथवा प्रथम महा-अधिकार का उपसंहार करके इसके अध्ययन का फल बताया गया है ।
SR No.010068
Book TitleKundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1988
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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