SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६ ] [ प्राचार्य कुन्दकुन्द और उनके पंच परमागम प्रथम खण्ड (श्रुतस्कन्ध) में षडद्रव्य-पंचास्तिकाय का वर्णन है और द्वितीय खण्ड में नवपदार्थपूर्वक मोक्षमार्ग का निरूपण है। प्रथम और द्वितीय खण्ड की सन्धि स्पष्ट करते हुए प्राचार्य अमृतचन्द्र ने प्रथम खण्ड के अन्त में और दूसरे खण्ड के प्रारम्भ में एक छन्द दिया है, जो इसप्रकार है : "व्यस्वरूपप्रतिपादनेन शुद्धं बुधानामिह तत्त्वमुक्तम् । पदार्थभंगेन कृतावतारं प्रकोय॑ते संप्रति वर्म तस्य ॥' प्रथम खण्ड में अब तक द्रव्यस्वरूप के प्रतिपादन द्वारा बुघपुरुषों को शुद्धतत्त्व का उपदेश दिया गया। अब पदार्थभेद द्वारा प्रारम्भ करके उस शुद्धात्मतत्त्व की प्राप्ति का मार्ग दिखाया जाता है।" उक्त छोटे से छन्द में दोनों खण्डों में प्रतिपाद्य विषय को तो स्पष्ट किया हो गया है, साथ ही दोनों के मल प्रयोजन को भी स्पष्ट कर दिया गया है। प्रथम खण्ड के समस्त प्रतिपादन का उद्देश्य शुद्धात्मतत्त्व का सम्यक् ज्ञान कराना है। तथा दूसरे खण्ड के प्रतिपादन का उद्देश्य पदार्थविज्ञान पूर्वक मुक्ति का मार्ग अर्थात् उक्त शुद्धात्मतत्त्व की प्राप्ति का मार्ग दर्शाना है । उक्त दोनों खण्ड इतने विभक्त हैं कि दो स्वतन्त्र ग्रन्थ से प्रतीत होते हैं। दोनों के एक जैसे स्वतन्त्र मंगलाचरण किये गये हैं । प्रथम खण्ड समाप्त करते हुए उपसंहार भी इसप्रकार कर दिया गया है कि जैसे ग्रन्थ समाप्त ही हो गया हो। प्रथम खण्ड की समाप्ति पर ग्रन्थ के अध्ययन का फल भी निर्दिष्ट कर दिया गया है । दूसरा खण्ड इसप्रकार प्रारम्भ किया गया है, मानों ग्रन्थ का ही प्रारम्भ हो रहा है। आचार्य अमृतचन्द्र ने 'समयव्याख्या' नामक टीका के मंगलाचरण के साथ ही तीन श्लोकों द्वारा पंचास्तिकायसंग्रह के प्रतिपाद्य को स्पष्ट कर दिया है, जो कि इसप्रकार है : "पंचास्तिकायषड्दव्यप्रकारेण प्ररूपणम् । पूर्व मूलपदार्थानामिह सूत्रकृता कृतम् ॥ जीवाजीवद्विपर्यायरूपाणां चित्रवर्मनाम् । ततो नवपदार्थानां व्यवस्था प्रतिपाविता ॥ १ समयव्याख्या, छन्द ७
SR No.010068
Book TitleKundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1988
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy