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________________ प्रकाशकीय [द्वितीय संस्करण] प्रस्तुत कृति का प्रथम संस्करण फरवरी १९८८ में ही प्रकाशित किया गया था। मात्र माह में इसकी ५,२०० प्रतियां समाप्त हो गई, जो एक बहत बड़ी उपलब्धि है। फिर भी मांग निरन्तर बनी हई है, लगता है यह द्वितीय संस्करण भी अतिशीघ्र समाप्त हो जाएगा। इस कृति में उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर आचार्य कुन्दकुन्द के संक्षिप्त परिचय के साथ-साथ उनकी अनमोल कृतियों-समयसार, प्रवचनसार, नियमसार, पंचास्तिकायसंग्रह तथा अष्टपाहढ़-इन पंच परमागमों का संक्षिप्त सार भी दिया गया है। अतः इस कृति के स्वाध्याय से उक्त पच परमागमों में प्रतिपादित विषयवस्तु का संक्षिप्त परिचय प्राप्त हो जाता है । जिन लोगों के पास न तो इतना समय है और न जिन्हें इतनी रुचि ही है कि उक्त परमागमों का प्राद्योपान्त स्वाध्याय करें, उन लोगों के लिए तो यह कृति अत्यन्त उपयोगी है ही, पर स्वाध्याय करने वालों के लिए भी उपयोगी है; क्योंकि उक्त परमागमों के गहरे स्वाध्याय में तो वर्षों लगते हैं, पर इस कृति के माध्यम से वे एक दिन में ही इन पंच परमागमों की विषय-वस्तु से परिचित हो सकते हैं। इस पुस्तक का अन्तिम भाग 'कुन्दकुन्द शतक' के नाम से है, जिसमें पंच परमागमों की चुनी हुई १०१ गाथायें हैं, जिनका डॉ. भारिल्ल जी ने सरल पद्यानुवाद भी किया है । इसकी अबतक पृथक् से १ लाख से अधिक प्रतियाँ 'कुन्दकुन्द शतक' के नाम से विभिन्न रूपों में मुद्रित होकर जन-जन तक पहुंच चुकी हैं । इसका अनुवाद मराठी, कन्नड़ एवं अंग्रेजी में हो चुका है, जो मराठी में ५,२००, कन्नड़ में ५,२०० और अंग्रेजी में २,२०० छप रहा है। यही नहीं इसका सस्वर पाठ भी कैसिट के रूप में उपलब्ध है। ये कैसिटें भी २० हजार से अधिक बिक्री होकर घर-घर में कुन्दकुन्द की वाणी गुंजा रही हैं। ___इसके साथ ही डॉ० शुद्धात्मप्रभा द्वारा लिखित एवं राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा पीएच.डी. उपाधि के लिए स्वीकृत शोध प्रबंध "प्राचार्य कुन्दकुन्द और उनके टीकाकार : एक समालोचनात्मक अध्ययन" भी इस ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित किया जा चुका है, जो बिक्री विभाग में उपलब्ध है।
SR No.010068
Book TitleKundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1988
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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