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काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ती
[ सूत्र १२ नैकशब्दः सुप्सुपेति समासात् ॥ ५,२,१२ ॥
अरण्यानीस्थानं फलनमितनैकद्र ममिदम् । इत्यादिषु नैकशब्दो दृश्यते । स च न सिद्धयति । नसमासे हि "नलोपो नमः' इति नलोपे "तस्मान्नुडचि' इति नुडागमे सति अनेकमिति रूपं स्यात् । निरनुबन्धस्य न शब्दस्य समासे लक्षणं नास्ति । तत्कथं 'नक' शब्द इत्याह । सुप्सुपेति समासात् ॥१२॥
गब्द परे हो वहाँ 'तस्मान्नुडचि' इस सूत्रसे लुप्त नकार नन्' से परे, अजादि 'एक' के पूर्व 'नुट्' का आगम होकर 'अनेक' पद बनता है । इसलिए नन् का 'एक' पद के माथ समास होकर अनेक' यह रूप बनता है । 'नैक' पद नही बनता है । 'नन के अतिरिक्त निपेधार्थ मे 'न' पद भी हो सकता है। परन्तु उसके समास का विधायक कोई सूत्र नही है । 'नन्' इस सूत्र से 'नन्' का ही समास होता है 'न' का नही । तव 'नैक' पद का प्रयोग कैसे होता है । यह शङ्का है। इसका उत्तर ग्रन्थकार ने यह दिया है कि 'नक' इस पद मे नम् का नहीं अपितु निषेधार्थक केवल 'न' पद का 'एक' पद के साथ सुप्सुपा'-'सुबन्त सुबन्तेन सह ममस्यते' इस नियम के अनुसार समास करके 'नक' पद का प्रयोग किया जाता है । इमी वात को अगले सूत्र में कहते है
'नेक' शब्द [ का प्रयोग] सुप्सुपा [ इस नियम के अनुसार किए हुए] समास से [ सिद्ध होता है ।
यह वनस्थान फलो से झुके हुए अनेक वृक्षो से युक्त है।
इत्यादि [ उदाहरणो ] में 'नक' शब्द का प्रयोग ] देखा जाता है। [परन्तु व्याकरण के नियम के अनुसार ] वह सिद्ध नही होता है। क्योकि 'मन' सूत्र मे] नम् समास होने पर 'नलोपो नमः' इस सूत्र से [ नन के ] न का लोप होने पर और तस्मान्नडचि' इस सत्र से नडागम करने पर 'अनकम्' यह रूप [ मिद्ध ] होगा।['नकम्' यह सिद्ध नहीं होगा। और नकार रूप ] अनुबन्ध रहित [ केवल ] न शब्द का समास होने का [ विधायक ] सूत्र नहीं है। तब 'नक' इस शब्द [ की सिद्धि ] को होगी [ इस शडा का समाधान करने ] के लिए कहते है। 'सुप्सपा' इस नियम 7 से समास होने से [ 'नैक' शब्द सिद्ध होता है।
१-४ सप्टाध्यायी ६, ३, ७२। 1-3 अप्टाध्यायी ६, ३, ७३ ।