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'प्रायोगिक' नाम्नि पञ्चमाधिकरणे द्वितीयोऽध्यायः
[ शब्दशुद्धि: ]
साम्प्रतं शब्दशुद्धिरुच्यते ।
रुद्रावित्येकशेपोऽन्वेष्यः । ५, २, १ ।
रुद्रावित्यत्र प्रयोगे एकशेपोऽन्वेप्योन्चेपणीयः । रुद्रश्च रुद्राणी
'प्रायोगिक' पञ्चम अविकरण में द्वितीय अध्याय
पञ्चम अधिकरण का नाम 'प्रायोगिक' अधिकरण है । इसमें कवियो के लिए शब्द वाक्य आदि के प्रयोग के नियम बतलाए है इसलिए इसका नाम 'प्रायोगिक' अविकरण रखा गया है। इस के प्रथम अध्याय में 'काव्य- समय नाम से काव्य में प्रयुक्त होने वाली सामान्य वातो का उल्लेख किया गया है । इम अध्याय में 'शशुद्धि' के विषय में लिखेंगे । कुछ शब्द ऐसे होते है जो देवने में शुद्ध मालूम होते है परन्तु वास्तव में पाणिनीय व्याकरण के अनुसार उनका प्रयोग उचित नहीं होता है । और कुछ होते हैं जिनको अशुद्ध मानकर कवि लोग उनका प्रयोग नही करते है । पर वास्तव में वह शुद्ध होते है और प्रयुक्त किए जा सकते है । इन दोनो प्रकार के कुछ प्रचलित दो की विवेचना इस अध्याय में करेंगे । सबसे पहले शिव और पार्वनी दोनो के लिए मम्मिलित रूप से होने वाले 'रुद्रों' इस प्रयोग को लेने है ।
शब्द इस प्रकार के
व शब्दगुद्धि का कथन करते है ।
खों' इस [ प्रयोग ] में एकशेप [ का विधान ] खोजना होगा [ श्रर्थात् मिलता नहीं है । अतएव यहां एकशेष करके शिव तथा पार्वती दोनो के लिए 'रुख' यह प्रयोग करना उचित नहीं ] है ।
[ शिव और पार्वती दोनों के लिए सम्मिलित रूप में एकशेष द्वारा ] 'eat' इम प्रयोग में एकशेष [ विधायक सूत्र का ] अन्वेषण करना होगा । रुद्र और [ रुद्रस्य पत्नी ] खाणी [ 'इन्द्रवरुणभवशर्वरुद्रमृडहिमारण्यमातुला