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________________ कहानी नहीं इस मॅडमे पीछेकी तरफ़ एक लड़की खड़ी थी। दस वरसकी उसकी उम्र होगी । वह सबसे डरपोक थी, शर्मीली थी और पीछे पीछे रहती थी । वह सबसे दुबली थी और आँखे उसकी सबसे बड़ी थीं। वह मुंहसे कुछ भी नहीं कहती थी, बस आँखोंसे देखकर रह जाती थी। ऐसा मालूम होता था कि एक डिब्बेके सामने खड़े होकर वह किसी एक आदमीपर आँखें गड़ा लेती थी। जब मुड चलता, वह भी चल पड़ती थी। उससे पहले वहाँसे आँख न हटाती थी। मैने देखा, उसकी आँखें मुझपर एक-टक गड़ गई है। इतनेमें अगले, शायद तीसरे दर्जेके, डिब्बेसे किसीने उसी लड़कीको मुखातिब करके एक पैसा पीछेकी तरफ़ फेका । पैसा गिरा, कई बच्चे झपटे । लड़की नज़दीक थी और पैसा भट मपट कर उसने उठा लिया । इतनेमें देखता क्या हूँ कि एक लड़का उसपर झपट पड़ा है और उसकी गत बना कर पैसा उसने छीन लिया है। बाल उसके और फैल गये है, तनपर खरोंच लग गई है, लेकिन लड़की फिर वैसी ही गुम-सुम सूनी आँखोसे मेरे डिब्बेमे मुझे देखती हुई वहीं खड़ी हो गई है! इतनेमे रेल चल दी। पहले तो लड़की खड़ी ही रही, फिर दौड़कर मेरे डिब्बेके पास आ गई और साथ साथ भागने लगी। -बाबू ! एक पैसा! वह साथ साथ भागती रही। प्लेटफार्मका करीब करीब किनारा ही आ गया था। मैंने पैसा निकाला और उसकी तरफ़ फेंक दिया। -जी हाँ, यह बेवकूफ़ी भी की! वह तो, खैर, हुआ, लेकिन सवाल यह है कि मेरी परेशानीका १४१
SR No.010066
Book TitleJainendra ke Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1937
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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