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________________ आप क्या करते हैं? 'हाँ', मैने कहा, 'वह तो जानता हूँ।' 'तो बस' गुरूने कहा, 'अदालतमे वकील वकालत करता है । अस्पतालमे डाक्टर डाक्टरी करता है।' 'अजी, तो वकालतको वह 'करता' क्या है ! जैसे मैं खाना खाता हूँ, यानी, खानेको मैं खा लेता हूँ, वैसे वह वकालतको क्या करता है ?' 'अरे तू है मूढ़ ।' उन्होंने कहा, 'सुन, वह अदालतके हाकिमसे बोलता है, बतलाता है, बहस करता है, कानूनी बात निकालता है। कानूनमे फंसे लोगोकी वही तो सार-संभाल करता है !' 'तो यह बात है कि वह बात करता है, बतलाता है, बहस करता है । कानूनकी बात निकालता है, उसके सताए आदमियोकी मदद करता है। लेकिन, आप तो कहते थे कि वह 'वकालत करता है ! वकालतमे बात ही तो करता है ! फिर, 'वकालत' कहाँ हुई :बात हुई । बात तो मैं भी कर रहा हूँ। क्यों जी !' ___ उन्होने झल्लाकर कहा, 'अरे, इस सब कामको ही वकालत कहते हैं।' 'तो वकालत करना, बात करना है । मैं तो सोचता था, न जाने वह क्या है । अच्छा जी, वकालतको करके वह क्या करता है? —यानी, अदालतमें वह बहुत बाते करता है। उन बातोंको करके भी, वह क्या करता है?' ____ उन्होंने कहा, 'रे मतिमंद, तू कुछ नहीं जानता। बातोहीका तो काम है। बात बिना क्या ! वकीलके बातोके ही तो पैसे हैं। उन बातोंसे वह जीता है, और फिर उन्हींसे बड़ा आदमी बनता है।' १२९
SR No.010066
Book TitleJainendra ke Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1937
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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