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________________ आप क्या करते हैं? नाम ! ' मैंने बता दिया- दयाराम' । दयाका या और किसीका राम मै किसी प्रकार भी नहीं हूँ। पर किसी अतयं पद्धतिसे मेरे दयाराम हो रहनेसे उन पूछनेवाले मेरे नए मित्रको मेरे साथ व्यवहारवर्णन करनेमें सुभीता हो जायगा । जहाँ मैं दीखा, बड़ी आसानीसे पुकार कर वह पूछ लेंगे, 'कहो दयाराम, क्या हाल है ?' और मै भी बड़ी आसान से दयारामके नामपर हँस-बोल कर उन्हें अपना या इधर-उधरका जो हाल-चाल होगा बता दूंगा। __ यहाँतक तो सब ठीक है। लेकिन, जब यह नए मित्र आगे बढ़ कर पूछते है, ' भाई, करते क्या हो ?' तब मुझे मालूम होता है कि यह तो मै भी जानना चाहता हूँ कि क्या करूँ ? 'क्या करूँ' का प्रश्न तो मुझे अपने पग-पग आगे बैठा दीखता है। जी होता है, पू), 'क्या आप बताइएगा, क्या करूँ ?' मैं क्या क्या बताऊँ कि आज यह यह किया ।-सबेरे पाँच बजे उठा, छह बजे घूम कर आया; फिर बच्चेको पढ़ाया; फिर अखबार पढ़ा; फिर बगीचेकी क्यारियाँ सींची; फिर नहाया, नाश्ता किया, फिर यह किया, फिर वह किया । इस तरह अब तीन बजेतक कुछ न कुछ तो मुझसे होता ही रहा है, यानी मैं करता ही रहा हूँ। अब तीसरे पहरके तीन बजे यह जो मिले है नए मित्र, तो इनके सवालपर क्या मै इन्हें सबेरे पाँचसे अब तीन बजेतककी अपनी सब कार्रवाइयोंका बखान सुना जाऊँ ? लेकिन, शायद, यह वह नहीं चाहते । ऐसा मै करूं तो शायद हमारी उगती हुई मित्रता सदाके लिए वहीं अस्त हो जाय । यदि उनका अभिप्राय वह जानना है जो उनके प्रश्न पूछनेके समय में कर रहा हूँ, तो साफ है कि मै उनका प्रश्न सुन
SR No.010066
Book TitleJainendra ke Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1937
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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