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________________ बुद्धि वादानुगामिनी होती है। और अनुमती, मुझे बहुत खुशी है, किसी doctrine की नहीं, एक idea. (गौतम-idea) की अनुगामिनी है। Idea. सप्राण वस्तु है। उसकी रेखाएँ बॅधी नहीं हैं इसीसे । भाई द्रविडजी, उपन्यासके बारेमें मेरी जो वृत्ति है वह वैज्ञानिक शायद न हो । पर मुझे तो वही उपलब्ध है। उसमे जिसे Characterization कहा जाता है, उसे लगभग बिल्कुल भी स्थान नहीं है । मुझे उस शब्दके भावका पता नहीं मिला ।' इससे पात्रको सागोपाग करनेकी ओर मेरा ध्यान नहीं जाता। क्या एक पात्र अपने आपमे कुछ भी चीज़ है ? असली चीज़ मेरी निगाहमें पात्रोंका पारस्परिक संबंध है, न कि पात्र स्वयं | relationship | मुझे विचारणीय बात मालूम पड़ती है, न कि persons । इससे सुबोधपर मैं अटकता नहीं । आपके सुझानेपर भी उसकी एकागिता मुझे खटकती नहीं । व्यक्ति क्या एकागीके अतिरिक्त सर्व-संपूर्ण हो भी सकता है ? असलमें सुबोधका व्यक्तित्व ( अथवा कि किसी भी एकका व्यक्तित्व ) खींच उठाना मेरा लक्ष्य नहीं है । अमुकके relations में किसी एकके relations क्या है, इसे दिखाते दिखाते यदि मैं कहीं भी आत्माके गहरे तलको जा छूता हूँ तो यही मेरे लिए बहुत है। उपन्यासकारके नाते, इससे अधिक मेरा इष्ट भी नहीं है। असलमे मैं पक्का उपन्यासकार नहीं हूँ। शायद कुछ whims हो जिन्हें छोड़ना नहीं चाहता। कहा जा सकता है कि लिखता है तो उन whims को ही निबाहने आर पुष्ट करनेके लिए। .........आपकी बात ठीक है । जीवनको जीते और बॉटते चलना चाहिए । इसी राइमें बहुत-कुछ आ जाता है। सस्नेह-जैनेन्द्र . . xxxx भाई द्रविडजी, २-९-३७ प्रश्नके बारे में यही कि अशेयकी स्थितिमें मैं थोड़ा सुधार सुझाना चाहूंगा। , उनका वाक्य है
SR No.010066
Book TitleJainendra ke Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1937
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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