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________________ प्रगति क्या? ऐसे आवाहनमे है जिनसे उनका वर्तमानके साथ ऐक्य पुष्ट हो । प्रगतिशील वह है जो निर्माता है और निर्माता वह है जिसके मनमें उस ऐक्यकी स्वीकृति है । कालके प्रवाहमें जो संगति नहीं देखता, जो उस प्रवाहके तलपर उठती हुई लहरोंके संघर्षमें खो जाता है, जो उस संघर्षको धारण करनेवाली अनवच्छिन्न एकताको नहीं देखता, वह किस भाँति निर्माता होगा ! निर्माता नहीं तो वह प्रगतिशील भी कहाँ हुआ? गति अनिवार्य है । उसके भीतर संगति अनिवार्य है। प्रगति संगतिके अनुकूल ही हो सकती है। उसमें प्रतिकूलता टिक नहीं सकती । जैसे बहती हुई धाराके वेगमें उछलकर कुछ पानीके कण मौजसे किसी भी दिशामे उड़ते रह सकते हैं, वैसे ही इतिहासकी गणनामे न आनेवाली कुछ बूदें बहक कर इधर उधर जा सकती है। पर, इतिहासकी धाराका प्रवाह तो एक और एक ही ओर है और वह 'ओर' स्वयं इतिहासमें से स्पष्ट है । प्रगति उसी ओर सहयोगिनी होती है। ___ गतिका शिकार होना प्रगति नहीं है। ठीक यही वस्तु है (गतिका यह शिकार होना) जो प्रगतिसे प्रतिकूल है । समयके गंभीर प्रवाहके ऊपर फैशनेबिल आधुनिकताओकी लहरें भी चलती हैं। आज उनका नाम यह वाद है तो कल वह वाद हो जाता है। किन्तु प्रगतिके शरीरपर वाद वैसे ही हो सकते है, जैसे मानवशरीरपर लोम । पर जैसे उन लोमोंमें मानव नहीं है वैसे ही 'वादों' में प्रगति नहीं है । प्रगति कमी उन वादों तक सिहर कर, कभी उनके बावजूद और अधिकतर उनको सहती हुई चलती है। २३१
SR No.010066
Book TitleJainendra ke Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1937
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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