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________________ तो मुन्नी उससे उलझ पड़ेगी । कहेगी-अम्माँ, अरी अम्माँ, देख । ' और जब अम्माँ उसकी ओर मुखातिब होगी तब सामने दूर जाकर मुँहकी ओट करके कहेगी, 'मुन्नी नहीं है, अम्माँ । मुन्नी नहीं है, मुन्नीको ढूँदो।' तब मुन्नीकी अम्माँ भी सारे कमरेमें इधर-उधर, कभी कलमदानके नीचे, कभी होल्डरके निबमें, ग्लासमें या सूईके नकुएमें, यहाँ-वहाँ और जहाँ-तहाँ खोज मचाती हुई मुन्नीको ढूँढ़ती है, कहती जाती है,-'अरे मुन्नी कहाँ है ? (कपड़ेको उलट-पलटकर) अरे कहाँ है ? मुन्नी, ओ मुन्नी !" __ और मुन्नी सामने खड़ी-खड़ी चोरी-चोरी अम्माँके यत्नोंकी विफलता देखकर और उसमें रस लेकर मुंहको दोनों हाथोंसे ढककर कहती है-'मुन्नी नहीं है, अम्माँ । मुन्नी नहीं है । ढूँढ़ो।' अम्माँ बहुतेरा ढूँढ़ती है, पर सामने खड़ी हुई मुन्नी नहीं मिलती। ओह ! जाने कितनी देर बाद वह मिलती है । मिलनेके बाद ही दो कदम भागकर फिर मुँह दुबकाकर खड़ी हो जाती है, कहती है'अम्माँ, मुन्नी फिर नहीं है, और ढूँढ़ो।' मुन्नीको इस खेलमें बड़ा आनन्द आता है। हमें भी आनन्द आता है। हम कहते है-'मुन्नी है।' और वह भागकर किसी वस्तुकी ओट लेकर कहती है-'मुन्नी नहीं है।' अपनी आँखे बन्द करके समझती है, वह नहीं रही है। ___ अभी तक ऐसा अवसर नही आया कि हमारे मनमे इच्छा हुई हो, कि उसको बुलाकर विद्वत्तापूर्वक समझावें । कहें, कि पगली सुन, तेरे देखने और दीखनेपर औरोकी अथवा तेरी सचा निर्भर नहीं है
SR No.010066
Book TitleJainendra ke Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1937
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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