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________________ खूबसूरती नहीं आई। हो सकता था कि वे चार आनेसे भी कमकी बिकतीं । अच्छी साफ बनतीं तो मुमकिन था, ज्यादहकी भी बिक सकती थी। फिर भी, कल्पना यही की जाय कि वह चार ही आनेकी बिकी और श्याम उन चार आनोंके फिर खील-बताशे लेकर घर पहुँच गया। .. इस उदाहरणमें हम देख सकते हैं कि रामको दिये गये एक रुपयेने उतना चक्कर नहीं काटा। श्यामके रुपयेने जरा ज्यादह चक्कर काटा । यद्यपि अन्तमें श्यामका रुपया भी, सोलह आनेका ही रहा और इस बीच श्यामने कुछ मेहनत भी उठाई। रामका रुपया भी बिना मेहनतके सोलह आनेका रहा । फिर भी, दोनोके सोलह आनेके रुपयेकी उपयोगितामें अन्तर है। वह अन्तर श्यामके पक्षमें है और वह अन्तर यह है कि जब रामने उसके सोलहों आने खर्च किये थे, तब श्यामने उसमेंके चार आने खर्च नहीं किये थे, बल्कि लगाये थे। उस लगाने का मतलब यही कि उसको लेकर श्यामने कुछ मेहनत भी की थी और रुपयेका मूल्य अपनी मेहनत जोड़कर उसने कुछ बढ़ा दिया था। हम कह सकते है कि श्यामने रामसे अधिक बुद्धिमानीका काम किया और श्याम रामसे होनहार है। मान लो, कि उसकी कन्दीले धेलेकी भी नहीं बिक सकी; फिर भी, यही कहना होगा कि श्याम रामसे समझदार है। उसने स्वयं घाटेमें रहकर भी रुपयेका अधिक मूल्य उठाया। प्रत्येक व्यय एक प्रकारकी प्राप्ति है। हम रुपये देते हैं तो कुछ और चीज़ पाते हैं। ऐसा हो नहीं सकता कि हम दे और लें नहीं। और कुछ नहीं, तो यह गर्व और सम्मान ही हम लेते हैं कि हम १९२
SR No.010066
Book TitleJainendra ke Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1937
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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