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________________ हवामें भगाना है। ऐसे, टट्टू मुंहके बल गिरेगा और सवारकी भी खैर नहीं है। दिल्ली नगरमें बच्चोंके लिए दूधकी ज़रूरत है और सावनमें ये चादल फिर भी पानी ही बरसाते हैं ! आकाश सूना खड़ा है, क्यों नहीं गुच्छेके गुच्छे अंगूर टपका देता है ! हमें ज़रूरत अंगूरोंकी है और आकाश निरुपयोगी भावसे बेहयाईके साथ कोराका कोरा खड़ा है ! ये बादल और आस्मान दोनों निकम्मे हैं । उनसे कोई वास्ता मत रक्खो । जो उनसे सरोकार रखते है उनका वायकाट कर दो । ये तारे, रातमें चमकनेवाली यह दूधिया आकाश-गंगा, वह वीली चोटियाँ, वह मचलती हवा, वह प्रातः सायं क्षितिजसे लगकर बिखर रहनेवाले रंग-बिरंगे रंग, ये सब वृथा हैं। हमको पैसेकी सख्त ज़रूरत है, रोटीकी वेहद भूख है। और इन सब चीजोसे न रोटी मिलती है, न कौड़ी हाथ आती है। वे अनुपयोगी हैं । मत देखो उनकी तरफ | इंकार कर दो उन्हें । उनसे समाजका क्या लाभ ? और हम हिसाब-बहीमें लाभ चाहते हैं, लाम ! ___ तो ऐसी पुकार, कहना होगा कि, निरी बौखलाहट है। वह उपयोगिताकी भयंकर अनुपयोगिता है। २८८
SR No.010066
Book TitleJainendra ke Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1937
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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