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________________ जरूरी भेदाभेद पाखण्डका गढ़ बन जाता है। सोशलिज्मको आरम्भसे ही एक वाद बनाया जा रहा है, यह सोशलिज्म के लिए ही भयङ्कर है। महेश्वरजीने कहा- आप तो मिस्टिक हुए जा रहे हैं कैलाश बाबू, पर इससे दुनियाका काम नही चलता। आप शायद वह चाहते है जो साथ साथ दूसरी दुनिया को भी सँभाले । I हाँ, मैं वह चाहता हूँ जिससे सभी कुछ सँभले । जिससे समग्रतामें जीवनका हल हो । मुझे जीवन-नीति चाहिए, समाज अथवा राजनीति नहीं । वह जीवन-नीति ही फिर समाजकी अपेक्षा राज-नीति बन जायगी । जीवन एक है, उसमे खाने नहीं है । जैसे कि व्यक्तिका वह सॅमलना गलत है जो कि समाजको बिगाड़ता है, उसी तरह दुनियाका वह सँभलना गलत है जिसमे दूसरी दुनिया ( अगर वह हो, तो उस ) के बिगड़नेका डर है । आदमी करोड़पति हो, यह उसकी सिद्धि नहीं है । वह सम्पूर्णतः परार्थ - तत्पर हो, यही उसकी सफलता है । इसी तरह दुनियाकी सिद्धि दुनियबीपनकी अतिशयतामे नहीं है, वह किसी और बड़ी सत्तासे सम्बन्धित है । - आपका मतलब धर्मसे है ? हॉ, वह भी मेरा मतलब है । - लेकिन आप सोशलिज्म के खिलाफ तो नहीं है ? नहीं, खिलाफ नही हूँ। लेकिन बस इतना ही चाहिए । 'लेकिन' फिर देखेंगेयह कहकर महेश्वरजीने तनिक मुसकराकर चारों ओर देखा और फिर सामने रखे एक भागसे भरे गिलासको उठाकर वह दूसरी ओर चले गये। मैं बैठा देखता रह गया और फिर.... ११ -- -- १६१
SR No.010066
Book TitleJainendra ke Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1937
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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