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________________ जरूरी भेदाभेद नामुमकिन है कि वे दस मकान मेरे हो । किन्तु, यही असम्भवता आजका सबसे ठोस सत्य बनी हुई है । मै कहता हूँ यह रोग है, मैं कहता हूँ यह झूठ है। लेकिन सोशलिस्ट स्टेट आनेमे दिन लग सकते हैं, तब तक मुझे यह बर्दाश्त ही करते रहना होगा कि वे दसो मकान मेरे हों और मैं उन्हे अपना मानें -यद्यपि मैं अपने मनमे जानता हूँ कि वे मकान मुझसे ज्यादा उनके है जो अपनेको किरायेदार समझते हैं और जिन्हे उनकी जरूरत है।" इस स्थलपर एकाएक रुककर मेरी ओर मुखातिब होकर उन्होंने कहा-क्यो कैलाश बाबू ? __ शायद मैने ऊपर नहीं कहा कि जिस मकानमें मै रहता हूँ वह महेश्वरनाथजीका है । मैं उनके प्रश्नका कुछ उत्तर नही दे सका। __ उन्होने फिर पूछा-क्यो कैलाश बाबू , आप क्या कहते है ! सोशलिज्ममे ही क्या समाजके रोगका इलाज नहीं है ! हमारी राजनीतिके लिए क्या वही सिद्धान्त दिशा-दर्शक नहीं होना चाहिए ! हम कैसी समाज-रचना चाहते है, कैसी सरकार चाहते है, मनुष्योके आपसी सम्बन्धोंके कैसे नियामक चाहते है ! आप तो लिखा भी करते है, बताइए क्या कहते है ! __मै लिखता तो हूँ, पर छोटी छोटी बातें लिखता हूँ। बड़ी बातें बड़ी मालूम होती है। लेखक होकर जानते जानते मैंने यह जाना है कि मैं बड़ा नही हूँ, विद्वान् नहीं हूँ । बड़ी बातोंमें मेरा वश नही है। कहते हैं, लेखक विचारक होता है। मालूम तो मुझे भी कुछ ऐसा होता है। पर मेरी विचारकता छोटी छोटी बातोंसे १५७
SR No.010066
Book TitleJainendra ke Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1937
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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