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विषय
पृष्ठ श्री ऋषभदेव का जन्म बाल्यावस्था और इक्ष्वाकु कुल
३६५ विवाह
३६६ सौ पुत्रों के नाम
३६७ राज्याभिषेक
३६८ चार वंश भोजन पकाने आदि कर्म की शिक्षा पुरुप की ७२ कलाएं खी की ६४ कलाएं
३७३ १८ प्रकार की लिपि
३७४ श्री ऋषभदेव ही जगत् के कर्ता-ज्यवहार प्रवर्तक है। दीक्षा और छद्मस्थ काल केवलज्ञान की प्राप्ति और समवसरण
३७९ मरीचि और सांख्यमत की उत्पत्ति (श्रावक ) ब्राह्मणों की उत्पत्ति (आय) वेदों की उत्पत्ति और उच्छेद
३८८ हिंसात्मक यज्ञ और पिप्पलाद वेदमंत्र का अर्थ और वसुराजा
३९५ महाकालसुर और पर्वत श्री ऋपमदेव का निर्वाण
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