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________________ ३७० विषय पृष्ठ श्री ऋषभदेव का जन्म बाल्यावस्था और इक्ष्वाकु कुल ३६५ विवाह ३६६ सौ पुत्रों के नाम ३६७ राज्याभिषेक ३६८ चार वंश भोजन पकाने आदि कर्म की शिक्षा पुरुप की ७२ कलाएं खी की ६४ कलाएं ३७३ १८ प्रकार की लिपि ३७४ श्री ऋषभदेव ही जगत् के कर्ता-ज्यवहार प्रवर्तक है। दीक्षा और छद्मस्थ काल केवलज्ञान की प्राप्ति और समवसरण ३७९ मरीचि और सांख्यमत की उत्पत्ति (श्रावक ) ब्राह्मणों की उत्पत्ति (आय) वेदों की उत्पत्ति और उच्छेद ३८८ हिंसात्मक यज्ञ और पिप्पलाद वेदमंत्र का अर्थ और वसुराजा ३९५ महाकालसुर और पर्वत श्री ऋपमदेव का निर्वाण ४०८ ७५ ३७७ ३८४ ४०४
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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