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प्रथम परिच्छेद
१३ - “विगतो मलोऽस्य - विमलः, विमलज्ञानादियोगाद्वा विमल: " दूर हुवा है अष्टकर्मरूपमल जिसका सो विमल, अथवा निर्मल ज्ञानादि योग से विमल । " यद्वा गर्भस्थे मातुर्मतिस्तनुश्च विमला जातेति विमलः ” – अथवा भगवान जब गर्भ में थे, तब माता की बुद्धि अरु शरीर ए दोनों निर्मल होगये इस कारण से विमल नाम जानना ।
१४ - " न विद्यते गुणानामन्तोऽस्य - अनन्तः, अनन्त कर्माराजयाद्वानन्तः, अनन्तानि वा ज्ञानादीनि यस्येत्यनन्तः "नहीं है गुणों का अन्त जिसका सो अनन्त, अथवा अनन्त कर्मा जीतने से अनन्त, अथवा अनन्त है ज्ञानादि गुण जिसके सो अनन्त । " रयणविचित्त-रयाखचियं प्रणतं - महत्पमाणं दामं सुमिणे जणणीए दिहं त प्रणतोत्ति" - [ प्रा० नि०, हारि० टी०, गा० १०८६ ] रत्न विचित्र - रत्न जडित अति मोठी दाम-माला स्वप्न में माता ने देखी तिस कारणे अनन्त ।
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१५ - "दुर्गती प्रपतन्तं सत्त्वसंघातं धारयतीति धर्मः " - दुर्गति में पड़ते जीवों के समूह को जो धारण करे सो धर्म । तथा "गर्भस्थे जननी दानादिधर्मपरा जातेति धर्म." - परमेश्वर के गर्भ में आने से माता दानादिक धर्म में तत्पर भयी, इस कारण से धर्म नाम ।
१६- " शान्तियोगात्तत्कर्तृकत्वाच्चायं शान्तिः " -- शान्ति के योग से वा शान्तिरूप होने से वा शान्ति करने से शान्ति ।