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था । तो भी सभा की कार्यकारिणी समिति ने श्रीमान् पं० हंसराज जी शास्त्री, तथा श्रीयुत भाई हंसराज जी एम. ए. पर इस कार्य का भार डाला | उन्होंने इतने थोड़े समय में भी दिन रात लगातार परिश्रम करके इस कार्य को सम्पूर्ण करने का जो कष्ट उठाया, उस के लिये महासभा उन दोनों सजनों की बहुत आभारी है।
लगभग १२०० पृष्ठों की पुस्तक के दोनों भागों का दाम केवल आठ आना ही रक्खा गया है, जब कि असल लागत डेढ़ रुपया के करीव आई है । इस का एक मात्र उद्देश्य सर्व साधारण में प्रचार ही है । यदि सर्व सजन इसे पढ़ कर लाभ उठायेंगे, तो हम अपना प्रयास सफल समझेंगे।
आभार प्रदर्शन- .. • श्रीमान् डाक्टर वनारसी दास जी M. A. P. H. D. प्रोफैसर ओरियंटल कालेज लाहौर का भी यह सभा आभार मानती है, जिन्हों ने हमारी प्रेरणा पर “महाराज साहब की भाषा" शीर्षक लेख लिख कर देने की कृपा की है, जो कि इस पुस्तक में दिया गया है ।
परमपूज्य जैनाचार्य श्री विजयवल्लभसूरि जी की प्रेरणा से जिन सजनों ने इस पुस्तक के प्रकाशन में धन की सहायता दी है, उन को यह महासभा हार्दिक धन्यवाद देती है । १०००) सूरत निवासी सेठ नगीनचन्द कपूरचन्द जी
जौहरी की धर्मपत्नी श्रीमती रुकमणी वहन