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इस पर भी पंजाव पर होने वाले गुरुदेव के असीम • उपकारों को देखते हुये, गुरुदेव की जन्म शताब्दि के उपलक्ष में श्री आत्मानन्द जैन महासभा ने कुछ न कुछ श्रद्धा के फूल गुरुदेव की सेवा में सविनय अर्पण करने का निश्चय किया, और उस के अनुसार शताब्दि के निमित्त यथाशक्ति किये जाने वाले विविध कार्यों का आरम्भ कर दिया। उन में से एक कार्य यह भी था, कि गुरुदेव के आद्य ग्रन्थ "जैनं तत्त्वादर्श" का अधिक प्रचार करने के लिये उस का नवीन और शुद्ध संस्करण प्रकाशित करा कर बहुत सस्ते दामों पर दिया जावे। क्योंकि यह ग्रन्थ जैन तथा जैनेतर सभी के लिये परम उपयोगी और बड़े महत्त्व का है ।
यद्यपि जैनतत्त्वादर्श बहुत वर्ष पहिले प्रकाशित हुआ था, परंतु आज वह दुष्प्राप्य है । और पूर्व प्रकाशित इस ग्रंथ में छापे की अनेक अशुद्धियां भी थीं, तथा उसका दाम अधिक होने से सर्व साधारण उस से लाभ उठाने में भी असमर्थ
थे । इन्हीं सब बातों के आधार पर उक्त ग्रन्थ के नवीन और
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शुद्ध संस्करण प्रकाशित करने का विचार स्थिर हुआ । परंतु इस कार्य के लिये समय बहुत थोड़ा था, क्योंकि लगभग
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१२०० पृष्ठ में समाप्त होने वाले ग्रंथ का संशोधन और नवीन शैली से सम्पादन करके उसे छपवाने के लिये प्रेस में देना, और प्रकादि का देखना वगैरह कार्य मात्र तीन मास के
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समय में होना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य प्रतीत होता