________________ 457 पंचम परिच्छेद को दूर करने के वास्ते धूमादि का यत्न भी न करे, तथा तिन के निवारण के वास्ते पंखा भी न करे, इस प्रकार से देशमशक परिपह को सहे। 6 अचेलपरिषह, चेल नाम वस्त्र का है, सो शीर्ण अर्थात् फटे हुए और जीर्ण भी होवे, तो भी प्रकल्पित वस्त्र न लेवे, सो अचेल परिषह / सर्वथा वस्त्रों के अभाव का नाम अचेल परिषह नहीं। क्योंकि आगम में जो वस्त्रादिक रखने का जो प्रमाण कहा है, उस प्रमाण में रखना परिग्रह नहीं है। परिग्रह उसको कहते हैं, कि जो मूळ रक्खे / उक्त चः * जंपि वत्थं व पायं वा कंवलं पायपुंछणं / तपि संजमलज्जष्ठा, धारंति परिहरंति य // न सो परिग्गहो वुत्तो, नायपुत्तेण ताइणा / मुच्छा परिग्गहो वुत्तो, इअ वुत्तं महेसिणा / / * छाया-यद्यपि वस्त्रं च पात्रं च, कम्बलं पादपुंछनम् / तदपि संयम लज्जार्थ धारयन्ति परिहन्ति च // न सः परिग्रह उक्तो ज्ञातपुत्रेण वायिणा / मूर्छा परिग्रह उक्त इत्युक्तं महर्षिणा // भावार्थ-यद्यपि वस्त्र, पात्र, कंवल, रजोहरणादि उपकरण साधु ग्रहण करते एवं उपभोग करते है, तथापि ये सब संयम की रक्षा के लिये है / अतः भगवान महावीर स्वामी ने उन्हें परिग्रह नहीं कहा, अपितु मूर्छा-ममत्व को ही परिग्रह कहा है। ऐसा गणधर देव का कथन है /