________________ 454 जैनतत्त्वादर्श जान बूझ कर पर्वत से गिर कर मर जाना, भर्ता के साथ सती होने के वास्ते अग्नि में जल मरना, पानी में डूब के भरना, विष खा के मरना, शस्त्र से मरना, इत्यादि स्वप्राणातिपात महापाप रूप क्रिया, यह प्रथम भेद / तथा दूसरीमोह, लोभ, क्रोध के वश होकर पर जीव को स्व अथवा पर के हाथ से मारना / 6. जीव अजीव का आरम्भ करना, सो आरम्भिकी क्रिया / 7. जीव अजीव का परिग्रह करना, सो पारिग्रहिकी क्रिया 8. माया करनी, सो मायाप्रात्यायेकी क्रिया। विपरीत वस्तु का श्रद्धान है निमित्त जिस का सो मिथ्यात्वदर्शन प्रात्ययिकी क्रिया / 10. जीव के हनने का तथा अजीव-मद्य मांसादि पीने खाने का जिस के त्याग नहीं, ऐसा जो असंयती जीव, तिस की क्रिया अप्रत्याख्यानिकी क्रिया / 11. घोड़ा, रथ प्रमुख जीव तथा अजीवों के देखने के वास्ते जाना, सो दर्शन किया / 12. जीव, अजीव, स्त्री, पुतली आदि का राग पूर्वक स्पर्श करना, सो स्पर्शन किया। . 13. जीव अजीव की अपेक्षा जो कर्म का बंध होवे, सो प्रातीत्यकी क्रिया / 14. जीव-पुत्र, भाई, शिष्यादिक, अजीव-भूपण, घर, हट्टादि, इन को जव सर्व दिशाओं से लोग देखने को आवें, देख कर प्रशंसा करें, तव तिन वस्तुओं का स्वामी हर्पित होवे, सो सामंतोपनिपातिकी क्रिया / 15. जीव-मनुप्यादि अरु अजीव-ईट का टुकड़ा आदि, इन को फैंके, सो नैसृष्टिकी क्रिया / 16. अपने हाथों करी जीव को