________________ 453 पंचम परिच्छेद कायिकी क्रिया दो प्रकार की है, एक अनुपरत कायिकी क्रिया, दूसरी अनुपयुक्त कायिकी क्रिया / उस में दुष्ट मिथ्यादृष्टि जीव के मन वचन की अपेक्षा से रहित पर जीवों को पीडाकारी, ऐसा जो काया का उद्यम, सो प्रथम भेद है। तथा प्रमत्त संयत का जो विना उपयोग के अनेक कर्त्तव्य रूप काया का व्यापार, सो दूसरा भेद / 2. दूसरी आधिकरणिकी क्रिया दो प्रकार से है / एक संयोजना, दुसरी निवर्त्तना। उस में विष, गरल, फांसी, धनु, यंत्र, तलवार आदि शस्त्रों का जीवों के मारने वास्ते जो संयोजन अर्थात् मिलाप करना, जैसे धनुष अरु तीर का मिलाप करना, इसी तरे सर्व जानना, यह प्रथम भेद / तथा तलवार, तोमर, शक्ति, तोप, चंदूक, इन का जो नये सिरे से बनाना, यह दूसरा भेद / 3. जिन निमित्तों से क्रोध उत्पन्न होवे, सो निमित्त जीव अजीव भेद से दो प्रकार के हैं / उस में जीव तो प्राणी, अरु अजीव खूटा, कांटा, पत्थर कंकर आदि, इन के ऊपर द्वेष करे। 4. तथा अपने हाथों करके, अरु पर के हाथों करके, जीव को ताडनापीडा देनी सो परितापना / इस परितापना के दो भेद हैं, एक तो स्व-अपने आप को पीडा देनी, जैसे पुत्र कलत्रादि के वियोग से दुःखी होकर अपने हाथों से छाती और सिर का कूटना, यह प्रथम भेद / तथा पुत्र शिष्यादि को ताडनापीटना, यह दुसरा भेद / 5. पांचमी प्राणातिपातिकी क्रिया के दो भेद हैं, एक तो अपने आप का घात करना जैसे कि